ख़ुशी एक शाश्वत भाव है। मानवता का जो मूल बिन्दु है, वो ख़ुशी ही है। ख़ुश होना, ख़ुश करना, ख़ुशी देना। त्योहार, पर्व, दान, अभिवादन, सहायता, सृजन सब इसी के इर्द-गिर्द हैं। ऐसी ही ख़ुशी की एक सामूहिक पहचान का पर्व है ईद। ईद यानी गले मिलें, दान करें, ख़ुशियाँ बाँटें, भेद से निकलें, अन्तर से निकलें, अलगाव से निकलें, दूसरा होने की पहचान से निकलें, शिकवों-शिकायतों से निकलें, बीती ख़राब स्मृतियों से निकलें और गले मिलें। दुआ दें, इज़्ज़त दें, मिठास दें।
गले लगाकर कहो- ईद है, मुबारक हो!
- विचार
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- 31 Mar, 2025
ईद का त्योहार पूरी दुनिया में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। खुशियां बांटें, गले लगें और कहें- ईद मुबारक! जानें इस खास मौके की अहमियत और परंपराएं।

ईद और ख़ुशी तो एकदम एक से हैं। यह अनायास ही नहीं है कि लोग ख़ुशियों को ईद से जोड़ते हैं। मसलन, आपने लोगों को कहते सुना होगा कि बस बेटा अच्छे नम्बरों से पास हो जाए तो हमारी ईद हो जाए। शायरों ने कहा है- हमारा यार मिल जाए, हमारी ईद हो जाए। ऐसा ही एक शेर देखें-
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिमरस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है।
चाँद वही है। उसी की गति से ईद भी तय होती है और करवाचौथ भी। फिर काहे का रगड़ा। ईद न केवल इबादत और शुक्राने का दिन है, बल्कि भाईचारे, मोहब्बत और ख़ुशियों को बाँटने का भी मौक़ा है। तो आज ख़ुद ख़ुश रहें, दूसरों को भी ख़ुश रखें। बच्चों को ईदी दें। पात्र कुपात्र न छाँटें।