कल मुतरेजा दोपहर में ही टपक पड़ा। सिनेमा का मैटिनी शो देखकर लौटा था। आते ही बड़ी-बड़ी बातें फेंकने लगा। इतिहास का ज्ञान देने लगा। वह भी समकालीन राजनीति का इतिहास। जिसका चश्मदीद मैं खुद को मानता हूँ। मुतरेजा इंदिरा गांधी पर बहुत तमतमाया हुआ था। मैंने पूछा- सिनेमा देखकर लोग खुश होते हैं, तुम इतना झल्लाए हुए क्यों हो। वह बोला- सर एक बार आप भी ये फिल्म देखिए, आपका भी खून खौल उठेगा। जिस इतिहास को आजतक छिपाया गया वो फिल्म में दिखाया गया है। मैं भी सोच में पड़ गया कि ऐसी कौन सी फिल्म है जिसने तीन घंटे में मुतरेजा जैसी जड़-बुद्धि को भी इतिहासकार बना दिया। पूछा तो बोला- सर कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ देखी। मैंने कहा – मुतरेजा, ज्ञान किताबों से मिलता है और सिनेमा से प्रायःमनोरंजन। फिल्में इतिहास और यथार्थ पर भी होती हैं। हालांकि आजकल कुछ परम विद्वान सिनेमा के ज़रिए अपना इच्छित इतिहास लिख रहे हैं। इस तरह न तो वो सिनेमा बना पा रहे और न इतिहास।
कंगना की ‘इमरजेंसी’ ने जड़-बुद्धि को भी इतिहासकार बना दिया!
- सिनेमा
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- हेमंत शर्मा
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- 20 Jan, 2025


हेमंत शर्मा
आजकल इतिहास को लेकर जिस तरह का सिनेमा या बातें हम लोग सुनते, देखते हैं, वो धारा की तरह समग्र नहीं हैं, सुविधाओं और विचारधाराओं के किनारों पर रुके हुए पानी की तरह कीच और गंध ज्यादा दे रहे हैं।
एक तरफ़ रोमिला थापर और आरएस शर्मा थे जिन्होंने इतिहास को वाम मार्ग पर ढकेल दिया। दूसरी तरफ़ पुरुषोत्तम नागेश ओक (पीएन ओक) जैसे शूरमा हुए जो इतिहास को दख्खिन की ओर ले गए। और अब कंगना रानौत नाम की नई इतिहासकार ने जन्म लिया है। तुम तो उल्टी गंगा बहा रहे हो मुतरेजा। तुम सिनेमा से ज्ञान लेकर आ गए और अब अपने फालतू के ज्ञान से मेरा मनोरंजन कर रहे हो। मेरे पास और भी काम हैं। तुम जाओ और मुझे अकेला छोड़ दो। मुतरेजा अपनी उजबकई में गम्भीर बात कह गया- “सर एकांत चाहिए तो सिनेमाहॉल से अच्छी कोई जगह नहीं। वहां मेरे जैसे बस दो-चार लोग ही थे। वो भी शायद इतिहास सीखने आए थे। हमारे अलावा वहां कोई नहीं था। हॉल में बिल्कुल शांति थी। तो आराम से जाइए- कैरेमलाइज़्ड पॉपकॉर्न पर निर्मला जी ने जीएसटी ज्यादा लगा दिया है इसलिए नमकीन पॉपकॉर्न खरीदिए और मजे से फिल्म देखकर इमरजेंसी का इतिहास सीखिए। कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।” मैं समझ गया कि मुतरेजा का कंगनाकरण हो चुका है और कंगना मुतरेजत्व को प्राप्त हो चुकी हैं।
मुतरेजा कंगना का फैन है। मुझे कंगना रनौत के इतिहासबोध की ज़्यादा जानकारी नहीं है। बस इतना जानता हूँ कि कंगना सुभाष चंद्र बोस को देश का पहला प्रधानमंत्री बताती हैं। 1947 में देश की आजादी उन्हें भीख लगती है। इन बयानों के बाद कंगना को अभिनेत्री या नेत्री तो मान सकता हूं, इतिहासकार क़तई नहीं। कंगना इंदिरा गांधी की हत्या के दो साल बाद पैदा हुईं और इमरजेंसी के बारह साल बाद। उम्मीद है कि इंदिरा जी की शख्सियत और इमरजेंसी के दौर की कहानी उन्होंने किताबों में पढ़ी होगी। पर उन्हें सुनकर तो लिख लोढा पढ़ पत्थर का अहसास होता है। मेरी नज़र में इमरजेंसी पर फिल्में उस दौर के इतिहास के साथ न्याय नहीं कर सकतीं। 21 महीने की कहानी को ढाई तीन घंटे में समेट पाना बहुत मुश्किल है। इमरजेंसी से ठीक पहले मुझे 1974 में बनारस में जेपी के जुलूस के आगे बैनर लेकर चलने का भी सौभाग्य मिला था। यह बात दूसरी है कि बारह बरस के मेरे किशोर दिमाग के ऊपर से सम्पूर्ण क्रांति चली जाती थी। इमरजेंसी को लोग सिर्फ राजनैतिक चश्मे से देखते हैं। मुझे लगता है कि इमरजेंसी को सामाजिक नज़रिए से भी देखा जाना चाहिए। ये इमरजेंसी का 50वां साल है। सोचिए मौलिक अधिकारों के बिना समाज की स्थिति क्या होगी।
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हेमंत शर्मा
हेमंत शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने 'युद्ध में अयोध्या' सहित कई किताबें लिखी हैं।