वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर का निधन हो गया। राजेश बादल लिखते हैं कि जीवन के एक बेहद खराब दौर में उन्हें रमेश नैयर ने बहुत सहारा दिया। रमेश नैयर भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान से यहां आए थे।
पेगासस मामले में जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने समिति का गठन तो कर दिया, लेकिन क्या यह जाँच इतनी आसान है? यदि सरकार ने जाँच में सहयोग नहीं किया तो समिति के सामने क्या मुश्किलें आएँगी?
राज्यसभा टीवी और लोकसभा टीवी बंद कर दिया गया और इसकी जगह अब संसद टीवी रहेगा। लेकिन सवाल है कि शानदार काम कर रहे दोनों चैनलों को क्यों बंद किया गया और अब एक टीवी दोनों सदनों की कार्यवाही का कवरेज कैसे करेगा?
राज कपूर बेहद संवेदनशील इंसान थे और ज़मीन से जुड़े हुए। वे दुनिया के तमाम देशों में लोकप्रिय थे, लेकिन उसका कोई गुरूर उनके भीतर नहीं था। इसी वजह से वे जहाँ भी जाते, लोगों को अपना दीवाना बना लेते।
कृष्णा के साथ उनका दाम्पत्य जीवन ख़ुशनुमा था, मगर जैसा राज का मिजाज़ था, वैसी स्थिति में जो भी होना चाहिए था, वह सब कुछ होता रहा। राज कपूर ने एक जगह हल्के फुल्के अंदाज़ में कहा भी कि सिर्फ़ इसी स्त्री को मैं आज तक खुश नहीं कर पाया हूँ।
एक दिन साहस करके राज कपूर ने विवाह का प्रस्ताव रख दिया । अफ़सोस! हेमा ने आमंत्रण ठुकरा दिया और किसी अन्य से ब्याह रचा लिया। राजकपूर की हालत ख़राब हो गई। उनका दिल टूट गया।
सारे देश में कोरोना से मौत पर कोहराम मचा हुआ है। महामारी काबू में नहीं आ रही है। लोग कीड़े- मकोड़ों की तरह मर रहे हैं। अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल रहे और श्मशानों में चिताएँ उपलब्ध नही हैं। मौतों के असली आँकड़े छिपाए जा रहे हैं।
कोरोना के दिन प्रतिदिन आ रहे आँकड़े बेहद ख़ौफ़नाक और डराने वाले हैं। जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें तो लगता है किसी को कोरोना की चिंता नहीं है। न भीड़ को, न उम्मीदवारों को, न सियासी पार्टियों को और न सितारा शिखर पुरुषों को।
आज इंदिरा गांधी की जयंती है। उन्हें इसलिए याद नहीं किया जाना चाहिए कि वे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी थीं बल्कि इसलिए स्मरण रखना चाहिए कि उन्होंने एक उनींदे, अलसाए से देश को जगाया।
सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश कुछ भी कहते रहें, उससे प्रशांत भूषण की छवि या प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आती। अगर इस मामले में किसी की छवि दाँव पर थी तो वह ख़ुद सर्वोच्च न्यायालय था।
विनोद दुआ के ख़िलाफ़ भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता की ओर से दर्ज़ कराई गई प्राथमिकी की चर्चा है। आरोप है कि अपनी तल्ख़ और बेबाक टिप्पणियों से उन्होंने इस पार्टी के नियंताओं को जानबूझ कर परेशान किया है।
पिछले सप्ताह केंद्र में एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा हुआ था। इस अवसर पर अनेक सार्वजनिक मंचों से इस अवधि के दौरान उपलब्धियों के लिए अपनी पीठ थपथपाई गई। क्या कोरोना संकट तक इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए था।
श्रमिकों ने सोचा कि सड़कों पर मारे-मारे फिरे तो सचमुच कोरोना से मर जाएँगे। किसी तरह घर पहुँच गए तो शायद ज़िंदा रह जाएँ अन्यथा मरण तो पक्का है। दोनों सूरतों में अगर मरना ही है तो क्यों न अपनी माटी में जाकर मिट्टी में मिल जाएँ।
चंद रोज़ पहले तक सवा सौ करोड़ की आबादी के इस मुल्क में संक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण दिखाई दे रहा था। लेकिन अब स्थिति नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है। इसके लिए ज़िम्मेदार कौन?