नहीं याद आता कि उनसे पहली बार कब मिला था पर यह ज़रूर कह सकता हूं कि पहली भेंट में ही उन्होंने दिल जीत लिया था। एकदम बड़े भाई या स्नेह से भरे अभिभावक जैसा बरताव। निश्छल और आत्मीयता से भरपूर। आजकल ऐसा बरताव तो देखने को भी नहीं मिलता।
रमेश नैयर : अब कहाँ हैं ऐसे लोग?
- श्रद्धांजलि
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- 8 Nov, 2022

वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर का निधन हो गया। राजेश बादल लिखते हैं कि जीवन के एक बेहद खराब दौर में उन्हें रमेश नैयर ने बहुत सहारा दिया। रमेश नैयर भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान से यहां आए थे।
बयालीस - तैंतालीस साल तो हो ही गए होंगे जब मैं रायपुर में रमेश नैयर जी से मिला था। एक शादी में रायपुर गया था। उन दिनों नई दुनिया में लिखा करता था और राजेंद्र माथुर के निर्देश पर शीघ्र ही सह संपादक के तौर पर वहाँ ज्वाइन करने जा रहा था। वहाँ नैयर जी और देशबंधु के संपादक ललित सुरजन जी की शुभकामनाएँ लेना मेरे लिए आवश्यक था। मैं देशबंधु अख़बार में भी तब बुंदेलखंड की डायरी लिखा करता था। नैयर साब के पास डाक से नई दुनिया पहुँचता था और देशबंधु तो वे पढ़ते ही थे। फिर वे मेरा आलेख पढ़कर चिट्ठी लिखकर अपनी राय प्रकट करते। उनके पत्र हौसला देते थे। फिर जहाँ - जहाँ भी गया, कभी फ़ोन, तो कभी चिट्ठी के ज़रिए संवाद बना रहा।
अपने उसूलों की ख़ातिर उन्होंने कई बार नौकरियाँ छोड़ीं थीं और आर्थिक दबावों का सामना किया था। लेकिन उनकी पीड़ा कभी ज़बान पर नही आई। कुछ कुछ मेरे साथ भी ऐसा ही था। जब भी मैने अपने सरोकारों और सिद्धांतों के लिए इस्तीफ़े दिए तो वे नैयर साब ही थे जो सबसे पहले फ़ोन करके पूछते थे कि भाई घर कैसे चला रहे हो। कोई मदद की ज़रूरत हो तो बताओ। मैं कहता था कि जब तक आपका हाथ सिर पर है तो मुझे चिंता करने की क्या आवश्यकता है? एक उदाहरण बताता हूँ।