loader

विपक्ष के लिए विधानसभा चुनाव नतीजे संजीवनी हैं!

दो विधानसभाओं और अन्य राज्यों में हुए उप चुनाव यक़ीनन भारतीय लोकतंत्र में प्राणवायु का काम करेंगे। इनका असर अगले साल होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा और फिर 2024 में लोकसभा निर्वाचन पर अवश्य दिखाई देगा। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद पक्ष और प्रतिपक्ष के आकार में बड़ा फ़ासला बन गया था। इससे मुल्क़ में लोकतांत्रिक असंतुलन पैदा हो गया था। कहा जाने लगा था कि पक्ष का क़द इतना विराट हो गया है कि उसके सामने विपक्ष अत्यंत दुर्बल नज़र आने लगा है। इससे अवाम के मसलों का स्वर मद्धम पड़ने का ख़तरा मंडराने लगता है। वह संसद या विधानसभाओं में जनता का पक्ष पुरज़ोर ढंग से नहीं उठा पाता।

दूसरी ओर पक्ष के व्यवहार और सोच में अधिनायकवादी मानसिकता झलकने लगती है। वह महत्वपूर्ण मसलों पर विपक्ष को भरोसे में भी नहीं लेता और न ही सदन में चर्चा ज़रूरी समझता है। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी और हिमाचल में कांग्रेस की जीत ने इस जनतांत्रिक असंतुलन को काफी हद तक संतुलित करने की संभावना जगाई है। कुछ राज्यों के उप चुनाव भी प्रतिपक्ष को ढाढस बंधाते नज़र आते हैं।

ताज़ा ख़बरें

हिमाचल में यूँ तो हर चुनाव में पार्टी बदलने की परंपरा सी बन गई थी। इसलिए कांग्रेस के लिए जीत का एक आधार सा बन गया था। इसके बाद प्रचार का नेतृत्व प्रियंका गांधी के हाथ में आया तो अपने हिमाचली अनुभवों का उन्होंने लाभ उठाया। निश्चित रूप से इस साल उत्तर प्रदेश में उनकी मेहनत का फ़ायदा पार्टी को नहीं मिला था, मगर उनके प्रचार अभियान की शैली ने लोगों का ध्यान अवश्य ही खींचा था। हिमाचल में चूँकि उन्होंने अपना घर बनाया है और छोटे प्रदेश में बीस बरस से उनका आना जाना रहा तो कमोबेश प्रत्येक ज़िले में उनके अपने गहरे संपर्कों का लाभ भी कांग्रेस को मिला।

इस पहाड़ी प्रदेश के मतदाता अच्छी तरह जानते थे कि प्रियंका कोई मुख्यमंत्री नहीं बनने वाली हैं और मुख्यमंत्री का कोई अन्य चेहरा भी पार्टी ने प्रस्तुत नहीं किया था। इसके बावजूद उन्होंने कांग्रेस में भरोसा जताकर अपनी परंपरा बरक़रार रखी। कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती इसलिए भी थी कि दशकों से हिमाचल का पार्टी पर्याय बने वीरभद्र सिंह भी इस बार नहीं थे और दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा का प्रदेश होने के कारण पार्टी ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।

हिमाचल में बीजेपी सरकार को अपनी उपलब्धियों का ख़ज़ाना रीता होने के कारण भी अनेक मुश्किलें आईं। केंद्र सरकार कहाँ तक उसका बचाव कर सकती थी? इस कारण यह परिणाम विपक्ष के रूप में कांग्रेस के लिए राहत भरा माना जा सकता है।

गुजरात में भी नतीजे अपेक्षित ही रहे। मोदी सरकार किसी भी क़ीमत पर इस राज्य में पराजय नहीं देख सकती थी। यदि ऐसा होता तो अगले चुनावों में पार्टी के मनोबल पर उल्टा असर पड़ता। इसलिए उसने अंधाधुंध आक्रामक अभियान चलाया। सामने प्रतिपक्ष बँटा हुआ था। लिहाज़ा मत भी विभाजित हो गए। इस नज़रिए से गुजरात के परिणाम संतोषजनक कहे जा सकते हैं। पर, इस प्रदेश ने भी विपक्ष को मज़बूती प्रदान की है। एक नई क्षेत्रीय पार्टी को इस प्रदेश ने राष्ट्रीय पार्टी में बदल दिया और क़रीब तेरह फ़ीसदी वोट आम आदमी पार्टी की झोली में डाल दिए। जिस दल को पिछले चुनाव में एक प्रतिशत मत भी नहीं मिले हों, उसे इस चुनाव में तेरह प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त होना इस बात का सुबूत है कि गुजरात में विपक्ष के दृष्टिकोण से सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है।

विचार से ख़ास

जो विपक्ष गुजरात के विधानसभा चुनाव में इस बार कोई चालीस फ़ीसदी वोट हासिल कर सकता है, वह लोकसभा चुनाव में इतने मत क्यों प्राप्त नहीं कर सकता? इस हिसाब से गुजरात के परिणाम भी विपक्ष के लिए आशा जगाते हैं।

सन्देश यह भी है कि विपक्षी एकजुट हो जाएँ तो पक्ष के लिए कठिन चुनौती खड़ी कर सकते हैं। यक़ीनन इस बारे में कांग्रेस से अधिक आम आदमी पार्टी को ध्यान देना होगा। अन्यथा उस पर भारतीय जनता पार्टी की बी टीम होने के आरोपों को बल मिलेगा।

कुछ राज्यों में हुए उपचुनावों का ज़िक्र भी यहाँ आवश्यक है। अधिकतर प्रदेशों में विपक्ष को क़ामयाबी मिली है। आमतौर पर उप चुनावों को जनादेश का प्रतीक नहीं माना जाता, लेकिन तात्कालिक परिस्थितियों में कई बार यह अपने ढंग से मतदाताओं के सोच को प्रतिबिंबित करते हैं। इस बार के उप चुनावों में उत्तर प्रदेश के उपचुनाव भी प्रतिपक्ष का हौसला बढ़ाने वाले हैं। इस विराट प्रदेश में कुछ महीने पहले ही भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में शानदार वापसी की है और उप चुनाव में उसे झटका लगा है। सन्दर्भ के तौर पर बता दूँ कि जब भारतीय जनता पार्टी पिछली बार सत्ता में आई थी तो दो सांसदों के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री बनने के बाद उप चुनाव हुए थे। दोनों चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को पराजय का स्वाद चखना पड़ा था। इसके मद्देनज़र यह गंभीर तथ्य है कि अपने कामकाज के बलबूते राज्य सरकार उपचुनाव जीतने में सक्षम नहीं है।

ख़ास ख़बरें

जब केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री प्रदेश के चुनावी रण में उतरते हैं, तभी उसकी नैया पार लगती है। दूसरी ओर प्रतिपक्ष शासित प्रदेशों में स्थानीय सरकार को मिली जीत का आकार बड़ा है। यह सुबूत है कि केंद्रीय बैसाखियों के दम पर विजय प्राप्त करने के भाव से बीजेपी को मुक्त होना पड़ेगा। अगले साल अनेक प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होंगे। कई प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी सरकार चला रही है। दो प्रदेशों में कांग्रेस के हाथ में सत्ता है। ऐसी स्थिति में हालिया चुनावों से विपक्ष को संजीवनी तो मिली है, लेकिन यदि प्रतिपक्षी सियासी पार्टियाँ एकजुट नहीं हुईं तो फिर यह संजीवनी बेअसर साबित होगी। विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त का दाँव हर बार चल जाए, यह ज़रूरी नहीं है।

अब प्रतिपक्षी पार्टियाँ भी अधिक सतर्क और जागरूक हो गई हैं। अब वे उसी तीर से आक्रमण करने के लिए तैयार हैं, जो उन पर चलाया जाता रहा है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
राजेश बादल
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें