भारतीय लोकतंत्र में कुछ समय से विपक्ष की भूमिका कमज़ोर होती दिखाई दे रही थी। राजनीतिक क्षेत्रों में सवाल उभरने लगा था कि मौजूदा सियासी दौर में पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच संतुलन की डोर बारीक़ होती जा रही है। पिछले दो आम चुनाव से भारतीय जनता पार्टी सरकार चलाने वाली एक मज़बूत पार्टी के रूप में तो देश के सामने थी, लेकिन विपक्ष के तौर पर चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का लगातार दुर्बल होना जम्हूरियत के लिए शुभ नहीं माना जा रहा था। अन्य क्षेत्रीय दल भी इसमें कोई सहयोग नहीं कर रहे थे। उनकी अपनी आंतरिक संरचना एक तरह से अधिनायकवाद की नई परिभाषा ही गढ़ रही थी। लेकिन कोरोना के भयावह काल में पाँच प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचन से हिंदुस्तानी गणतंत्र को ताक़त मिली है।
ममता बनर्जी बनेंगी प्रतिपक्ष की एकता की नई धुरी!
- राजनीति
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- 6 May, 2021

विपक्ष निर्बल होता गया था और प्रतीक स्वरूप बेहद मज़बूत और जुझारू राजनेता का अकाल होता गया था। यह अकाल पाँच राज्यों के चुनाव के बाद समाप्त होता दिखाई दे रहा है। बंगाली मतदाताओं ने सिर्फ़ अपने राज्य की नई सरकार ही नहीं चुनी है बल्कि ममता बनर्जी को प्रतिपक्ष का राष्ट्रीय चेहरा भी बना दिया है। समूचा देश अब उन्हें संयुक्त विपक्ष के मुखर स्वर के रूप में देख सकता है।
हालाँकि अवाम का बड़ा तबक़ा इन परिस्थितियों में चुनाव कराने के फ़ैसले को उचित नहीं मानता था। काफ़ी हद तक मेरी अपनी राय भी यही थी। पर, शायद कोई नहीं जानता था कि इन चुनावों के परिणाम एक बड़ी समस्या के समाधान की दिशा में देश को ले जा सकते हैं।