भारतीय लोकतंत्र में कुछ समय से विपक्ष की भूमिका कमज़ोर होती दिखाई दे रही थी। राजनीतिक क्षेत्रों में सवाल उभरने लगा था कि मौजूदा सियासी दौर में पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच संतुलन की डोर बारीक़ होती जा रही है। पिछले दो आम चुनाव से भारतीय जनता पार्टी सरकार चलाने वाली एक मज़बूत पार्टी के रूप में तो देश के सामने थी, लेकिन विपक्ष के तौर पर चुनाव दर चुनाव कांग्रेस का लगातार दुर्बल होना जम्हूरियत के लिए शुभ नहीं माना जा रहा था। अन्य क्षेत्रीय दल भी इसमें कोई सहयोग नहीं कर रहे थे। उनकी अपनी आंतरिक संरचना एक तरह से अधिनायकवाद की नई परिभाषा ही गढ़ रही थी। लेकिन कोरोना के भयावह काल में पाँच प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचन से हिंदुस्तानी गणतंत्र को ताक़त मिली है।