दिन प्रतिदिन आ रहे कोरोना के आँकड़े बेहद ख़ौफ़नाक और डराने वाले हैं। साल भर बाद कोरोना ज़्यादा दैत्याकार और विकराल आकार लेता जा रहा है। प्रारंभिक महीने तो किसी वैज्ञानिक शोध और व्यवस्थित उपचार के बिना बीते। विश्व बैंक, चीन और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप ने समूचे संसार को एक तरह से दुविधा में डाल कर रखा। न चिकित्सा की कोई वैज्ञानिक पद्धति विकसित हो पाई और न दुनिया भर के डॉक्टरों में कोई आम सहमति बन सकी। शुरुआत में इसे चीन की प्रयोगशाला का घातक हथियार माना गया। इसके बाद इसे संक्रामक माना गया तो कभी इसके उलट तथ्य प्रतिपादित किए गए। कभी कहा गया कि यह तेज़ गर्मी में दम तोड़ देगा तो फिर बाद में बताया गया कि तीखी सर्दियों की मार कोरोना नहीं झेल पाएगा। हालाँकि चार छह महीने के बाद एक दौर ऐसा भी आया, जब लगा कि हालात नियंत्रण में आ रहे हैं। ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर लौटने लगी है। लोग राहत की साँस भी नहीं ले पाए कि आक्रमण फिर तेज़ हो गया। पर यह भी एक क़िस्म का भ्रम ही था।