मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े में दमोह ज़िला है। वहाँ विधानसभा का उपचुनाव हो रहा है। एक विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गया। अब उसकी सीट पर दमोह में उप चुनाव हो रहा है और वही पूर्व विधायक अब बीजेपी से चुनाव लड़ रहा है। इस एक सीट पर निर्वाचन तुरंत होना चाहिए- ऐसी कोई आसमानी आफ़त नहीं आई थी, जिससे राज्य सरकार गिर जाती और न ही कोई लोकतंत्र के लिए आकस्मिक ख़तरा आ पड़ा था।
दमोह: कोरोना के गंभीर ख़तरे के बीच क्या उपचुनाव ज़रूरी था?
- विचार
- |
- |
- 14 Apr, 2021

प्रसंग के तौर पर याद दिलाना ज़रूरी है कि आपदा की स्थिति में चुनाव पहले भी टाले जाते रहे हैं। जब 1984 में भोपाल गैसकाण्ड हुआ तो उसके बाद भोपाल में लोकसभा क्षेत्र के चुनाव टाल दिए गए थे। उस समय संसदीय लोकतंत्र पर कोई क़हर नहीं टूटा था। तो अब इसे क्या माना जाए। संवैधानिक लोकतंत्र की एक अनिवार्यता या फिर ज़िले में कोरोना को और फैलने देने तथा लोगों को मौत के मुँह में धकेलने का एक षड्यंत्र।
माना जा सकता है कि यह चुनाव एक तरह से उस विधायक की ओर से चुनाव आयोग और मतदाताओं पर थोपी गई अनावश्यक प्रक्रिया है। उस विधायक की अंतरात्मा की आवाज़ ने अचानक शोर मचाया और उसने दल-बदल लिया। अब उस विधानसभा क्षेत्र, प्रदेश सरकार और निर्वाचन आयोग की ज़िम्मेदारी बन गई है कि दमोह में लोकतंत्र की रक्षा करे।