मैं उन दिनों कॉलेज में बीएससी का छात्र था। 25 जून 1975 को आपातकाल लगा। सेंसरशिप भी थोपी गई। अख़बार सब कुछ प्रकाशित करने के लिए अब आज़ाद नहीं थे। उससे पहले लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में भी कूदे थे। विचारों की फ़सल जवानी के उस दौर में पकने लगी। चंद रोज़ बाद पत्रकारिता में प्रवेश का अवसर मिला। क्या संयोग था कि उन दिनों के ज़िला कलेक्टर भी सेंसरशिप के ख़िलाफ़ थे। उनकी नौकरी बचाते हुए हम पत्रकारिता करते रहे। वह दिलचस्प दास्तान कभी अलग से लिखूँगा।