सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश कुछ भी कहते रहें, उससे प्रशांत भूषण की छवि या प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आती। अगर इस मामले में किसी की छवि दाँव पर थी तो वह ख़ुद सर्वोच्च न्यायालय था। विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि माननीय न्यायालय ने एक बार नहीं सौ बार मुँह की खाई है। माननीय न्यायाधीश तो पिछली सुनवाई में ही कह चुके थे कि कोई ऐसा नहीं है, जो ग़लती न करे और इस बार तो ख़ुद अदालत ग़लती कर चुकी है। कम से कम हिन्दुस्तान के लोग तो यही मानते हैं। यदि पिछली बार ही प्रशांत भूषण दोषी मान लिए गए थे तो इसके बाद चार पाँच घंटे की चर्चा का औचित्य ही क्या था। ज़ाहिर है माननीय न्यायालय अपना सम्मान बचाने के लिए कोई इज्ज़त भरा रास्ता खोजने की कोशिश कर रहा था। इसमें वह असफल रहा और प्रशांत भूषण एक नए नायक बन कर देश के सामने प्रस्तुत हैं।