महिलाओं को लेकर सोच क्यों नहीं बदल रही है? हर 15 मिनट में एक बलात्कार (2018) का होना समाज के रूप में क्या देश की असफलता नहीं है? भारत में ऐसे मामलों में सजा मिलने की दर मात्र 27-28% होना, क्या दिखाता है?
2020-21 में उत्तर प्रदेश के पुलिस थानों में, कस्टडी के दौरान, 451 नागरिकों की मौत हो गई, जबकि 2021-22 में मौतों का यही आंकड़ा बढ़कर 501 हो गया। ये किस किस्म का क़ानून का शासन है? ये किस तरह की प्रशासनिक शैली है? यह कैसा लॉ एंड ऑर्डर है?
प्रतिष्ठित ब्रिटिश जर्नल BMJ ने पाया है कि भारत में हर साल लगभग 22 लाख मौतें वायु प्रदूषण से हो रही हैं। आख़िर ख़राब हवा से हो रही मौतें मुद्दा क्यों नहीं बन पातीं?
अगर सचमुच जनता के हाथ मजबूत होते तो क्या सीएम योगी आदित्यनाथ को झाँसी नहीं आना पड़ता और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक लखनऊ से ही अपने इस्तीफे की घोषणा नहीं कर देते?
भारत में औसतन वायु प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा में 5.3 वर्ष की कमी आती है। दिल्ली जैसे शहरों में तो यह कमी 11.9 वर्षों तक हो सकती है। क्या यह डरावना नहीं है?
2014 में देश की सत्ता जब कांग्रेस से भाजपा के पास पहुंची और नेतृत्व नरेंद्र मोदी के पास जा रहा था तब वैश्विक भुखमरी सूचकांक यानी जीएचआई 17.1 था। 2023 में भारत का स्कोर 29.4 था। आख़िर ऐसी स्थिति कैसे बनी?
मणिपुर में हिंसा फिर से शुरू हो गई है। ड्रोन से हमले किए जा रहे हैं और उपद्रवी रॉकेट बनाकर लोगों को निशाना बना रहे हैं। जानिए, केंद्र सरकार क्या कर रही है?
देश में लगातार दुष्कर्म और गैंगरेप के मामले आ रहे हैं। महिलाओं के प्रति हिंसा, यौन यातनाएं, अलग-अलग तरह की प्रताड़नाएँ आख़िर रुकने या कम होने के बजाय बढ़ क्यों रही हैं?
पुरुषों ने ही सारे संस्थान बनाए, वही उस पर सबसे अधिक संख्या में हैं, वही तय करते हैं कि बलात्कार के बाद भी शादी करवा दी जाए, वही तय करते हैं कि यौन शोषण के बावजूद आरोपी से कुंडली मिलवा दी जाए...
भारत में पर्याप्त भोजन की व्यवस्था और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून (2013) होने के बाद भी लगभग 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो रात में भूखे सोते हैं। पौष्टिक आहार की तो बात ही दूर है।
इस लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया क़रीब 90 दिन तक चली। यह अब तक सबसे ज़्यादा समय तक चलने वाले चुनावों में से एक है। जानिए, आख़िर क्यों विपक्षी दल चुनाव आयोग की शिकायत करते रहे और क्या क्या सवाल उठे।
जिस पीएम मोदी जी को दुबई में एक ऐसे कार्यक्रम का मुख्य अतिथि चुना गया जहां यह चर्चा होनी थी कि भविष्य में सरकारें कैसी होनी चाहिए, वह अपने मुख्य विपक्षी दल के घोषणापत्र को ‘मुस्लिम लीग’ की छाप कहकर पुकारता है, उससे भारत क्या आशा कर सकता है?
पिछले दस सालों में किसानों से किया गया क्या एक भी वादा पूरा हुआ? स्वामीनाथन कमेटी की एमएसपी की सिफारिश, किसानों की आय 2022 तक दोगुनी, पिछले किसान आंदोलन के दौरान का वादा? किसानों का ग़ुस्सा कितना जायज?
सब कुछ ‘एक’ कर देने वाली सरकार क्या विविधता का जश्न नहीं मनाना चाहती? जब तक अलग-अलग विचार और संस्कृतियाँ व मूल्य सम्मान नहीं पाते, उन्हें सँजो करके नहीं रखा जाता तब तक लोकतंत्र किस रूप में रहेगा?