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पूरी चुनाव प्रक्रिया में ECI पर क्यों उठते रहे सवाल?

संवैधानिक संस्था का अर्थ है वह संस्था जिसका संविधान में एक स्थान हो जिसे एक संवैधानिक जिम्मेदारी दी गई हो, जिसके क्रिया कलाप पर, लिए गए निर्णयों पर पूरी तरह भरोसा किया जा सके, जो सरकार या व्यक्ति से पहले लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझे। देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं बहुत महत्व की हैं लेकिन सभी का महत्व एक जैसा नहीं है। मेरी नजर में कुछ संस्थाएं अत्यधिक महत्व की हैं, ऐसा महत्व जिनके बिना लोकतंत्र ढह जाएगा। कुछ संस्थाएं समान्य महत्व की हैं, जो लोकतंत्र के बने रहने में सहयोगी की भूमिका निभाती हैं।

भारत निर्वाचन आयोग, एक अत्यधिक महत्व की संस्था है। यहाँ तक कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी यह निर्णय दे चुका है कि वो चुनाव के दौरान और चुनाव आयोजित करने की योजना में, आयोग के कार्यों में किसी भी किस्म की दखलंदाजी से बचेगा। 

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यदि महत्व इतना अधिक हो तो जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जानी चाहिए थी। मैं यहाँ धर्म और हेट स्पीच को लेकर चुनाव आयोग की अकर्मण्यता पर बात नहीं कर रही हूँ, मेरी बात है चुनाव आयोग की भारत और इसके भूगोल से संबंधित समझ को लेकर। आज मेरा सवाल यह बिल्कुल नहीं है कि चुनाव आयोग पीएम मोदी के धर्म के आधार पर वोट मांगने को लेकर चुप क्यों रहा? मेरा सवाल यह भी नहीं है कि धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र, भारत का प्रधानमंत्री डेढ़ महीने तक खुलेआम देश के अल्पसंख्यकों को टारगेट करता रहा और आयोग चुप क्यों रहा? मेरा सवाल पीएम मोदी के चुनावी ध्यान और उस पर चुनाव आयोग की मौन प्रतिक्रिया को लेकर भी नहीं है। 

मेरा सवाल यह है कि क्या भारत का चुनाव आयोग, भारत के भूगोल, यहाँ की जलवायु और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को लेकर अनभिज्ञ है? आयोग ने जिस तरह लोकसभा चुनाव 2024 का कार्यक्रम बनाया उसे देखकर कम से कम यही लगता है कि आयोग की भारत के विषय में जानकारी शून्य है। भारत हीट वेव की चपेट में है। दिल्ली जैसे शहरों में तापमान लगभग 53 डिग्री तक जा पहुँचा है। यह सब अचानक नहीं हुआ, सभी को पता है भारत में मई हीट वेव के लिहाज से सबसे ख़तरनाक महीना होता है। जिस बात को पूरी दुनिया जानती है उस बात को भारत का चुनाव आयोग कैसे नहीं जानता? ये आश्चर्य के साथ-साथ चिंता का विषय भी है। चिंता इसलिए क्योंकि निर्वाचन आयोग, मतदान के दौरान सर्वशक्तिमान संस्था का रूप धारण कर लेता है। भारत का कोई भी सरकारी कर्मचारी आयोग द्वारा दी गई ड्यूटी को टाल नहीं सकता। यदि कोई ड्यूटी से इंकार करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होती है और वह जेल भी जा सकता है। लेकिन जिस तरह देश भर में हीट वेव की वजह से चुनाव कर्मियों की मौत हो रही है उसे देखकर लगता है कि इस तरह मरने से अच्छा होता कि वो चुनाव ड्यूटी करने के चुनाव आयोग के फरमान को मानने से ही इंकार कर देते, क्योंकि निर्वाचन आयोग एक घोर अवैज्ञानिक और लापरवाह नज़रिये से चुनाव का संचालन किया है। 

निर्वाचन आयोग को पता होना चाहिए था कि 2015 में पेरिस समझौते के बाद यह तय हुआ था कि धरती का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री कम ही रखा जाएगा और किसी भी हालत में 2100 तक धरती का तापमान 2 डिग्री से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाएगा। लेकिन अगले ही साल, 2016, में तापमान ने पिछले 137 सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए। विश्व मौसम विज्ञान संगठन, (WMO) की रिपोर्ट ‘ग्लोबल क्लाइमेट, 2011-2020’ में बताया गया कि यह पूरा दशक धरती और समुद्र के तापमान के लिहाज से अब तक का सबसे गरम दशक था। पिछले ही साल 2023 ने तापमान में 2016 का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया। साल 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष बन चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2024 इस रिकॉर्ड को भी तोड़ देगा इसके बावजूद भारत के चुनाव आयोग ने पूरी गैर-जिम्मेदारी के साथ इतनी भीषण गर्मी में न सिर्फ चुनाव आयोजित करवाया, बल्कि यह चुनाव अब तक के सबसे लंबे चलने वाले चुनावों में से एक रहा है। इस भीषण गर्मी में हजारों सुरक्षा बलों को देश के एक कोने से दूसरे में भेजना जबकि इससे बचा जा सकता था, अमानवीय है। यह चुनाव किसी ऐसे मौसम में करवाया जा सकता था जब लोगों को मौसम की उग्रता का सामना न करना पड़ता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। न ही मतदाताओं की तकलीफ समझी गई और न ही चुनाव कर्मियों की। इसकी वजह से लोकतंत्र का नुकसान तो हुआ ही, साथ ही आयोग की असंवेदनशीलता भी लोगों के सामने आ गई। 2024 लोकसभा चुनावों में न सिर्फ मतदाताओं का प्रतिशत घटा है बल्कि गर्मी की वजह से मौतें भी खूब हुईं। 
जब इस गर्मी में चुनाव ड्यूटी पर गए प्रशिक्षित सुरक्षा बलों की मौत हो जा रही है तब प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की क्या हालत होगी?
भारत में पिछले कुछ दिनों में ही हीट वेव से 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। बिहार में चुनाव के अंतिम चरण में 8 सीटों पर मतदान हुआ। गर्मी के लहर की वजह से यहाँ 14 लोगों की मौत हुई है जिसमें से 10 वो लोग हैं जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा मतदान ड्यूटी पर लगाया गया था। उत्तर प्रदेश, जहां गर्मी का आतंक पसरा हुआ है, यहाँ 7वें चरण में 13 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ। यूपी के मिर्जापुर में भी 15 मतदान कर्मियों की मौत हीट स्ट्रोक की वजह से हो गई है। झारखंड में भी चुनाव हुआ यहाँ भी 1326 लोगों को हीट स्ट्रोक की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया है। स्थानीय अख़बारों में खबर है कि प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में प्रतिदिन जलायी जाने वाली लाशों की संख्या 400 के पार पहुँच गई है, जबकि सामान्यतयः यह संख्या लगभग 200 रहती थी। ऐसी भीषण गर्मी में चुनाव कराया गया, क्या यह जानबूझकर किया गया अपराध नहीं लगता? इस चुनाव को व्यवस्थित तरीक़े से कराया जाता तो ऐसे वीभत्स परिणाम न आते। 
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ऐसा नहीं है कि यह सब अचानक हो गया। गर्मी ने अपने रंग बहुत पहले ही दिखाने शुरू कर दिए थे। अप्रैल में, पश्चिम बंगाल में पिछले 15 वर्षों में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी वाले दिन दर्ज किए गए, इसके बाद पड़ोसी तटीय राज्य ओडिशा का स्थान रहा, जहां गर्मी की स्थिति नौ वर्षों में सबसे खराब थी। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार 2024 का अप्रैल महीना 1901 के बाद से सबसे ज्यादा गर्म अप्रैल का महीना था। मतलब साफ था कि आने वाले मई जून में हालात और खराब ही होने थे। IMD ने बहुत पहले बता दिया था कि 2024 में उग्र हीट वेव की संख्या 10-11 रहेगी जबकि सामान्य वर्षों में यह 3-4 ही रहती है। इसका मतलब यह था कि इस साल तीन गुना ज्यादा समय तक हीट वेव चलेगी, इसकी वैज्ञानिक घोषणा हो चुकी थी लेकिन भारत निर्वाचन आयोग ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया? पता नहीं क्या सोचकर इस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक घोषणा पर ध्यान नहीं दिया।  

क्या चुनाव आयोग को हीट वेव की जानकारी नहीं है? या वो यह नहीं जानते कि हीट वेव से क्या क्या नुकसान संभव हैं? 

यदि किसी मौसम स्टेशन (मैदानी) में तापमान 40 डिग्री और पहाड़ी क्षेत्र में 30 डिग्री से अधिक दर्ज कर लिया जाए तो इसे हीट वेव माना जाता है। भारत के विभिन्न मैदानी इलाकों में गर्मी का सामान्य औसत तापमान 37 डिग्री के आसपास रहता है। यदि किसी दिन, किसी स्थान पर इस तापमान से 4.5 से 6.5 डिग्री की बढ़ोत्तरी हो जाए तो इसे उग्र हीट वेव की संज्ञा दी जाती है। अब अपने आसपास के शहरों के दैनिक तापमान को देखिए और समझिए आपका क्षेत्र किस अवस्था में है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, औसत से अधिक गर्म परिस्थितियों के संपर्क में आने के कारण शरीर की तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है और इसके परिणामस्वरूप गर्मी में ऐंठन, गर्मी से थकावट, हीटस्ट्रोक और हाइपरथर्मिया सहित कई बीमारियाँ हो सकती हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के चुनाव कर्मियों के साथ यही हुआ है।  

WHO मानता है कि हीट वेव की वजह से अस्पताल में भर्ती होना और फिर प्रभावित व्यक्ति की मौत ये दोनों बहुत जल्दी घटित हो सकते हैं, इतना जल्दी कि जिस दिन भर्ती हुए उसी दिन मौत हो सकती है, जबकि कभी कभी इसका प्रभाव धीमा भी हो सकता है, ऐसे में उन लोगों को दिक्कत होती है जिनके शरीर में पहले से ही कोई कमजोरी मौजूद हो। 53 डिग्री तो फिर भी बहुत अधिक तापमान है। वैज्ञानिकों का मानना है कि औसत तापमान से थोड़ा भी ऊपर तापमान मृत्यु का कारण बन सकता है। 

पूरी दुनिया में भारत दूसरे नंबर का सबसे ज्यादा मधुमेह रोगियों वाला देश है। भारत में इनकी संख्या लगभग 8 करोड़ है (2021)। भारत में हृदय रोगियों की संख्या लगभग 6 करोड़ है। साथ ही भारत में होने वाली कुल मौतों में से 26% का करण हृदय रोग से जुड़ा हुआ है। भारत इन दोनों बीमारियों से जूझ रहा है। इन दोनों के लिए गर्मी और हीट वेव बहुत ज्यादा ख़तरनाक है। WHO का कहना है कि- अत्यधिक तापमान हृदय, श्वसन और मस्तिष्क के रोग और मधुमेह से संबंधित स्थितियों सहित पुरानी स्थितियों को भी खराब कर सकता है। क्या चुनाव आयोग जानता है कि उसके कितने चुनाव कर्मी मधुमेह, ब्लड प्रेशर और अन्य हृदय की बीमारियों से पीड़ित हैं? 

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इतना ही नहीं, चुनाव करवाना और मतदान करना दोनों ही चेतना की स्वस्थ अवस्था में ही किए जाने वाले कार्य हैं। लेकिन गर्मी से यह चेतना नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, गर्मी की स्थिति मानव व्यवहार को पर्याप्त रूप से प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त बीमारियों के संचरण, स्वास्थ्य सेवा वितरण, वायु गुणवत्ता और ऊर्जा, परिवहन और पानी जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक बुनियादी ढांचे को भी प्रभावित करती है। 

मेरा सवाल यह है कि जो आयोग, तमाम परीक्षाओं, त्योहारों आदि का ध्यान रखता है, क्या उसने अपना चुनाव कार्यक्रम बनाते समय मौसम जैसी सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था का ध्यान रखा? क्या उसने इस बात का ख्याल रखा कि इस अप्रत्याशित गर्मी से अपने चुनाव कर्मियों को कैसे बचाएगा? क्या उसके पास अपने चुनाव कर्मियों का स्वास्थ्य विवरण था? जिससे ड्यूटी के समय ज़रूरी सुविधाएं प्रदान की जा सकें और जिला प्रशासन इस बात के लिए तैयार रह सके। क्या मौसम की गंभीरता को लेकर चुनाव आयोग द्वारा भारत मौसम विज्ञान विभाग और भारतीय स्वास्थ्य विभाग से परामर्श किया गया? अगर इन तमाम प्रश्नों का उत्तर ना है तो यह कहने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए कि निर्वाचन आयोग, जोकि एक सम्मानित संवैधानिक संस्था है उसने चुनाव आयोजित करने के क्रम में मनमानी, अवैज्ञानिक और गैर-जिम्मेदार रवैये को दर्शाया है और साथ ही चुनाव के दौरान हुई मौतों के लिए चुनाव आयोग को उसकी लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

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वंदिता मिश्रा
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