2021 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान जब प्रियंका गांधी ने “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” का नारा दिया तब तमाम चुनावी पंडितों और राजनैतिक विश्लेषकों को इसमें कोई खास बात नज़र नहीं आई। उनके विपक्षियों ने इसे चुनावी चाल कही। उन्होंने यह साफ-साफ कहा भी और फैलाया भी कि यह नारा प्रियंका गाँधी की ‘अवसरवादी’ राजनैतिक चाल है, जिससे उन्हें आधी आबादी वोट करे।
‘तपस्वियों के राज’ में बलात्कार पीड़िताओं को न्याय क्यों नहीं मिलता?
- विमर्श
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- 15 Dec, 2024

महिलाओं को लेकर सोच क्यों नहीं बदल रही है? हर 15 मिनट में एक बलात्कार (2018) का होना समाज के रूप में क्या देश की असफलता नहीं है? भारत में ऐसे मामलों में सजा मिलने की दर मात्र 27-28% होना, क्या दिखाता है?
प्रियंका गाँधी ने 40% आरक्षण का वादा किया और 2021 के विधानसभा चुनावों में 40% महिला उम्मीदवारों को चुनाव भी लड़ाया लेकिन परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं आया। कॉंग्रेस चुनाव बुरी तरह हार गई। यहाँ तक कि कॉंग्रेस अपने पुराने वोट प्रतिशत को भी बरक़रार नहीं रख सकी। शायद लोगों को प्रियंका गाँधी की यह सोच ज़्यादा पसंद नहीं आई जिसमें महिलाओं को राजनैतिक रूप से सशक्त किए जाने का दृष्टिकोण था। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जिनमें नेतृत्व क्षमता होती है वो निर्णय लेते समय व्यक्तिगत नफ़ा-नुक़सान नहीं देखते। प्रियंका गांधी के विषय में भी यही सच है। महिलाओं के सशक्तिकरण की जिस विचारधारा को वो यूपी चुनावों में सामने ले आयीं, जिससे तमाम काँग्रेसी नेता भी सहमत नहीं थे, वो उनके लिए कोई चुनावी पासा नहीं बल्कि यह उनकी शानदार राजनैतिक सोच थी।