75 साल पहले 1950 में, आज ही के दिन, 26 जनवरी को भारत ने अपना संविधान पूरी तरह से अंगीकार किया था। आज ही के दिन के बाद से भारत ‘रिपब्लिक’ अर्थात् गणतंत्र कहलाने लगा। इसका अर्थ यह था कि भारत में ‘क़ानून का शासन’ होगा और यह देश संविधान के आदर्शों के आधार पर ही चलेगा। कम से कम सैद्धांतिक रूप से तो यही तय किया गया था।
क्या गणतंत्र के ऐसा बन जाने का सपना देखा था आंबेडकर ने?
- विमर्श
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- 26 Jan, 2025

भारत गणतंत्र दिवस मना रहा है लेकिन क्या डॉ. आंबेडकर के सपने का गणतंत्र हम बना पाए? क्या सामाजिक और आर्थिक असमानता मिल पाई? कहीं संविधान के आदर्श ही तो ख़तरे में नहीं?
26 जनवरी का दिन चुने जाने का ऐतिहासिक महत्व यह था कि इसी दिन 1930 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता वाले लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज’ की घोषणा कर दी थी। साथ ही यह भी तय किया गया था कि इस दिन को हर साल ‘स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में मनाया जायेगा। पूर्ण स्वराज की घोषणा का कारण अंग्रेजों का दुर्व्यवहार था, वे लोग भारतीयों से बराबरी का व्यवहार नहीं करते थे और न ही उन्हें संविधान/विधान बनाने में बराबर का सहयोगी मानते थे। उन्होंने पहले साइमन कमीशन (1927) का गठन किया और उसके बाद नेहरू रिपोर्ट (1928) को ख़ारिज कर दिया। इन दो बड़ी घटनाओं के बाद कांग्रेस ने अपना रूख तय कर लिया था, कांग्रेस ने सोच लिया था कि इस देश को अब सिर्फ़ ‘पूरा स्वराज’ ही चाहिए इससे कम पर कुछ भी नहीं स्वीकार किया जायेगा, कांग्रेस ने तय कर लिया था कि अब इस देश का संचालन इसी देश के नागरिकों द्वारा बनाये गए संविधान से ही होगा, न कि इंग्लैंड में बैठी ब्रिटिश सत्ता और संसद से।