पेरिस, 2015 में 17 सतत विकास लक्ष्यों को अंगीकृत किया गया। इसका उद्देश्य था 2030 तक पृथ्वी और इसमें रहने वाले लोगों की शांति और समृद्धि। इन्हीं में से एक लक्ष्य है, सतत विकास लक्ष्य-2। इसका लक्ष्य 2030 तक ‘ज़ीरो भुखमरी’ और कुपोषण को समाप्त करना है। अब इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सिर्फ़ 6 वर्षों का समय ही बचा है। भारत इस लक्ष्य से कितना दूर है और इसे लेकर कितना गंभीर है, इसकी पड़ताल करना ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ रिपोर्ट जारी की गई है। 24 जुलाई को सामने आई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में इस समय लगभग 19.5 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं। यह संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है।
कुपोषण की राजधानी बन गया भारत!
- विमर्श
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- 28 Jul, 2024

भारत में पर्याप्त भोजन की व्यवस्था और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून (2013) होने के बाद भी लगभग 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो रात में भूखे सोते हैं। पौष्टिक आहार की तो बात ही दूर है।
कृषि संगठन यानी एफ़एओ के अनुसार, जब व्यक्ति अपने दैनिक आहार से उतनी ऊर्जा प्राप्त नहीं कर पाता जिससे वह एक सामान्य व सक्रिय जीवन जीने में सक्षम हो सके तो यह अवस्था कुपोषण कहलाती है। ‘विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति’ यानी एसओएफ़आई की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग आधे से अधिक भारतीय (55.6%) आज भी ‘स्वस्थ आहार’ का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। जबकि वैश्विक स्तर पर यह प्रतिशत 35.4% है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत में लगभग 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते।