30 जुलाई को वायनाड में हुए भूस्खलन से अभी तक 358 लोगों की मौत हो चुकी है और 240 से अधिक अभी भी लापता हैं। इसकी पूरी संभावना है कि मौत का यह आँकड़ा अभी और भी बढ़ेगा। पिछले एक सप्ताह में देशभर में भूस्खलन की घटनाएँ घटी हैं। इसमें केरल के अतिरिक्त कर्नाटक, और 6 अन्य हिमालयी राज्य- अरुणाचल, असम, मिज़ोरम, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों में हुई इस भयानक त्रासदी में हुई मौतों को भी जोड़ लिया जाए तो, बीते सप्ताह भारत में भूस्खलन की घटनाओं में लगभग 304 लोग और मारे जा चुके हैं। सिडनी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर पियरे रॉगनोन का मानना है कि कम समय में अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन के लिए मैकेनिकल ट्रिगर की तरह काम करती है और इससे भारी मात्रा में मिट्टी का बहाव होता है जिससे वायनाड जैसी घटनाएँ जन्म लेती हैं; जहां महीनों तक सिर्फ़ तबाही, मौत और शोक का ही संचार होता रहता है। वायनाड जैसी घटनाओं के लिए प्राकृतिक कारण भी होते हैं और मानव-जनित कारण भी। जहां प्राकृतिक कारणों के लिए ख़ुद को समायोजित करना ज़रूरी होता है वहीं मानवजनित कारकों के लिए नीतिगत प्रयास करने होते हैं। विकास के नाम पर जिस तरह बेलगाम गति से जंगलों को काटा जा रहा है उससे लगता है कि सरकारों में आपदाओं को रोकने के लिए नीतिगत प्रयास करने की मंशा है ही नहीं।