एप्पल टीवी प्लस की एक वेबसीरीज़ है, साइलो (SILO) जो आपको 300 साल बाद की एक डिस्टोपियन दुनिया में ले जाती है। यह एक वर्टिकल सोसाइटी है जहाँ लोग कई मंजिलों में बसे हुए हैं। यहाँ मनुष्यों के जीवन को बचाने के नाम पर उनके अधिकारों का शोषण बहुत ही साधारण बात है। जो लोग ज़्यादा जानकारी लेना चाहते हैं, साइलो के बाहर की दुनिया और असलियत के बारे में जानना चाहते हैं उन्हें दूसरों की सुरक्षा के नाम पर मार दिया जाता है। लेकिन इतनी अमानवीय सोसाइटी में भी बच्चों की देखभाल की व्यवस्था बहुत चाक-चौबंद है। साइलो की सोसाइटी में हर जगह कैमरे हैं जिससे लोगों को ‘कंट्रोल’ किया जा सके पर साइलो में बच्चों को इन कैमरों से मुक्त रखा गया है, यहाँ पर हर हाल में बच्चों की देखभाल को सुनिश्चित किया जाता है।
क़ब्रगाह बनते अस्पतालों पर जवाबदेही किसी की नहीं?
- विमर्श
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- 17 Nov, 2024

अगर सचमुच जनता के हाथ मजबूत होते तो क्या सीएम योगी आदित्यनाथ को झाँसी नहीं आना पड़ता और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक लखनऊ से ही अपने इस्तीफे की घोषणा नहीं कर देते?
पर बच्चों की इतनी ज़रा सी देखभाल और सुरक्षा परिस्थितियों को भी भारत जैसे आधुनिक लोकतंत्र में गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज झाँसी में हुई इस दर्दनाक घटना ने इस बात के पुख्ता प्रमाण लाकर रख दिए हैं कि नवजातों की भी ज़िंदगी कोई मायने नहीं रखती। इस सरकारी मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (NICU) में 15 नवंबर को आग लग गई जिसकी वजह से 10 नवजात बच्चों की झुलसकर मौत हो गई, 16 अन्य बच्चे, ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हैं, उनका इलाज चल रहा है। मैं इस घटना को ‘दुर्घटना’ नहीं कहूँगी क्योंकि ऐसा कहना नाइंसाफ़ी होगी। मैं इसे, एक अक्षम नेतृत्व की घोर लापरवाही और ग़ैर जिम्मेदार प्रशासन की मिसाल कहूँगी। यह घटना सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रशासन की लापरवाही और सरकारी निगरानी क्षमता की कमजोरी से पैदा हुई है।