जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाली संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक बैठक, बाकू, में लगभग असफल ही रही। विकसित देश सिर्फ़ अपने बारे में सोचने में लगे हैं उन्हें विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से पैदा होने वाली चुनौतियों की कोई फ़िक्र नहीं है। इसलिए विकासशील देशों को स्वयं अपने बारे में सोचना चाहिए। यह बात भारत जैसे दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या और ख़तरनाक जनसंख्या घनत्व वाले देश के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। चुनाव परिणामों के वेग में यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारत वायु प्रदूषण की आपदा के मुहाने पर खड़ा है। 65 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों की संख्या के मामले में भारत, चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। भारत में लगभग 9 करोड़ बुजुर्ग हैं। जबकि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है, ऐसे बच्चों की संख्या भारत में 11 करोड़ से भी अधिक है। वैसे, वायु प्रदूषण किसी भी उम्र वर्ग को नहीं बख़्शता लेकिन देश की यह 20 करोड़ जनसंख्या वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित होती है। इतनी बड़ी जनसंख्या, सीमित क्षेत्रफल, लचर विनियामक संस्थाओं और लगभग शून्य जागरूकता वाले देश भारत के लिए वायु प्रदूषण एक ‘साइलेंट आपदा’ है।