स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए सबसे अहम ईंट है। यदि निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में कोई लोकतंत्र चूक जाता है तो चुनाव के बाद वह देश लोकतंत्र की परिभाषा से भी बाहर हो जाता है।
आंबेडकर ने क्यों कहा था कि चुनाव आयोग सरकार के नियंत्रण से दूर रहे?
- विमर्श
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- 24 Dec, 2023

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया में मोदी सरकार क्यों बदलाव कर रही है? क्या सरकार के इस बदलाव से चुनाव आयोग निष्पक्ष और पारदर्शी रह पाएगा?
वर्तमान भारत इस समय उसी बिन्दु पर पहुँच चुका है। लोकसभा ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त बिल, 2023 पारित कर दिया। इस विधेयक की सबसे विवादास्पद और लोकतंत्र विरोधी बात यह है कि इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनने के लिए जिस समिति के गठन की बात की गई है उसमें भारत के प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कोई केन्द्रीय मंत्री व लोकसभा में विपक्ष के नेता को शामिल किया गया है। तीन लोगों की इस समिति में जिसके पास एक निष्पक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त चुनने की जिम्मेदारी होगी, उसमें केंद्र सरकार का ही बहुमत विद्यमान है। यह बात निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि प्रधानमंत्री और उनका सहयोगी मंत्री हमेशा एक ऐसे व्यक्ति को इस पद के लिए चुनेंगे जो उनका और उनके दल का समर्थन करे। और अंततः यह एक भेदभावपूर्ण चुनाव व्यवस्था को जन्म दे देगा। निष्पक्षता और स्वतंत्रता के अभाव में चुनाव प्रणाली पर भरोसा बने रहने का कोई भी कारण नहीं रह जाएगा। एक गैरभरोसेमंद चुनाव प्रणाली से चुनी गई सरकार को लोकतान्त्रिक सरकार भी नहीं कहा जा सकता है। और इस तरह एक ‘लोकतान्त्रिक गणराज्य’ की व्यवस्था अविश्वास और अंधकार में कहीं खो जाएगी।