
मुकेश कुमार सिंह
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, उदयपुर और मुम्बई में भी प्रवास रहा। फिलहाल, दिल्ली में बसेरा है।
कॉरपोरेट के बहिष्कार के सिवाय कोई रास्ता नहीं!
- • विश्लेषण • 15 Dec, 2020
हाथरस: राजनीति का अपराधीकरण ख़त्म होने तक ढोंग है ‘बेटी बचाओ’ का नारा
- • विचार • 4 Oct, 2020
‘विपक्ष विहीन भारत’ बनाना ही असली ‘मन की बात’ है!
- • विचार • 29 Sep, 2020
बढ़ती बेरोज़गारी, गर्त में जाती अर्थव्यवस्था के बीच सरकारों का निजीकरण पर जोर
- • विचार • 23 Sep, 2020
अर्थव्यवस्था का बुरा हाल, डैमेज़ कंट्रोल में जुटा संघ
- • विचार • 12 Sep, 2020
आख़िर कैसा आर्थिक सुधार है आयकर का नया फ़ेसलेस सिस्टम?
- • विश्लेषण • 16 Aug, 2020
संविधान बचाने के लिये ज़रूरी है आन्दोलनकारियों को बचाना
- • विचार • 13 Aug, 2020
कोरोना और कराहती अर्थव्यवस्था के बावजूद जनता उफ़ क्यों नहीं करती?
- • विचार • 28 Jul, 2020
आख़िर क्यों पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी सिरफिरी बातों से ही सत्ता पाना चाहती है?
- • विचार • 23 Jul, 2020
भारतीय सैनिक चीन के कब्जे में हैं, यह बात जनता से क्यों छुपाई गई?
- • विचार • 20 Jun, 2020
मोदी की विदेश नीति की वजह से 'हिन्दू राष्ट्र' नेपाल बन गया भारत विरोधी?
- • देश • 29 Mar, 2025
देश में ‘समानान्तर सरकार’ चल रही है तो क्या संवैधानिक ढाँचा ध्वस्त हो चुका है?
- • विचार • 31 May, 2020
वित्तमंत्री की ग़लतबयानी कि सरकार को नहीं पता प्रवासी मज़दूरों की संख्या
- • विचार • 29 May, 2020
निर्मला जी, मंदी के इस दौर में कौन लेता है क़र्ज़?
- • अर्थतंत्र • 27 May, 2020
कोरोना संकट पर संसद ख़ामोश क्यों? सत्र बुलाओ, जवाबदेही तय हो!
- • विचार • 25 May, 2020
सरकार ख़ज़ाना खाली करे तभी आईसीयू से बाहर निकल पाएगी अर्थव्यवस्था
- • विचार • 22 May, 2020
21 लाख करोड़ के कोरोना पैकेज़ में राहत के सिर्फ़ 2 लाख करोड़?
- • अर्थतंत्र • 18 May, 2020
वित्त मंत्री जी, किसानों को सपनों का पैकेज नहीं, बल्कि तुरंत राहत चाहिए
- • विचार • 16 May, 2020
20 लाख करोड़: तीन दिनों से राहत कम, भाषण ज़्यादा बरस रहा है
- • विचार • 15 May, 2020
ग़रीबों और मज़दूरों ने प्रधानमंत्री के ‘मन की’ तो सुनी, लेकिन उनकी ‘बात’ कहाँ थी!
- • विचार • 13 May, 2020
Advertisement 122455