प्रधानमंत्री की ओर से 13 अगस्त 2020 को देश को समर्पित नये फ़ेसलेस इनकम टैक्स सिस्टम से क्या वाक़ई देश में क्रान्तिकारी बदलाव के नये युग की शुरुआत हो जाएगी? सरकार ने आयकर संग्रह से जुड़े सबसे बड़े सुधारों का जो दावा किया है, उसकी ज़मीनी हक़ीक़त क्या है? नये सिस्टम में जिस Faceless Assessment, Faceless Appeal और Taxpayers Charter की बातें की गयी हैं, उसके मायने क्या हैं, उसमें नया क्या है और कैसे है तथा इससे किसे और कैसा फ़ायदा होगा? यदि आपमें भी इन सवालों की जिज्ञासा है तो आपके तमाम प्रश्नों का उत्तर है कि ये नोटबन्दी की श्रेणी वाला ही एक और एलान है।
कोरोना के दस्तक देने से पहले ही भारत के आयकर संग्रह में दो दशकों की सबसे बड़ी यानी 8 फ़ीसदी वार्षिक की गिरावट आयी है। मार्च 2020 तक देश में प्रत्यक्ष कर के तौर पर 10.27 लाख करोड़ रुपये इकट्ठा हुए। प्रत्यक्ष कर के दो प्रमुख घटक हैं– आयकर और कॉरपोरेट टैक्स। आयकर का कुल संग्रह 4.58 करोड़ रुपये और कॉरपोरेट टैक्स की रक़म 5.56 लाख करोड़ रुपये रही। मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी का पहला पूर्ण बजट जुलाई 2019 में पेश किया। पिछले साल की मन्दी को देखते हुए प्रत्यक्ष कर संग्रह के लक्ष्य को मार्च 2019 के मुक़ाबले जुलाई में 13.3 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 11.7 लाख करोड़ रुपये कर लिया गया। हालाँकि, वित्त वर्ष ख़त्म होने तक वास्तविक संग्रह में 1.43 लाख करोड़ रुपये की कमी रह ही गयी।
अनुमान है कि तमाम अपीलों के निपटारे के बाद अन्ततः वित्त वर्ष 2019-20 का आयकर संग्रह 4.6 करोड़ रुपये के आसपास सिमट जाएगा, क्योंकि कुछेक हज़ार रुपये का संग्रह और आयकर रिफंड वग़ैरह का समायोजन महीनों की देरी से होता है। ‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ यानी ‘Transparent Taxation – Honouring the Honest’ प्लेटफ़ॉर्म के एलान के वक़्त प्रधानमंत्री ने मायूसी जतायी कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने वाले आयकरदाताओं की संख्या महज़ 1.5 करोड़ है। भारत में प्रत्यक्ष करदाताओं के बेहद मामूली अनुपात को लेकर पिछली सरकारें भी चिन्तित रही हैं। इसके लिए हमेशा टैक्स चोरी को ही ज़िम्मेदार बताया जाता रहा है।
देश के सबसे बड़े सरकारी और वित्तीय दस्तावेज़ ‘आर्थिक सर्वे-2019’ के अनुसार, अभी देश में सालाना क़रीब 5.78 करोड़ आयकर रिटर्न दाख़िल होते हैं। लेकिन इनमें से भी 1.46 करोड़ लोग ही ऐसे हैं जो वास्तव में टैक्स भरते हैं। इन्हीं का टैक्स 2019-20 के लिए अन्ततः 4.6 लाख करोड़ रुपये के आसपास रहेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाक़ी बचे 4.32 करोड़ लोग ज़ीरो आयकर वाले रिटर्न दाख़िल करते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो क़रीब 1.5 करोड़ लोग ही ऐसे वेतनभोगी या व्यावसायी हैं जो 5000 रुपये से लेकर करोड़ों का आयकर चुकाते हैं। इनमें से 46 लाख ऐसे करदाता हैं, जिनकी सालाना आमदनी 10 लाख से ज़्यादा है। जबकि 3.16 लाख ऐसे करदाता हैं जिनकी सालाना आमदनी 50 लाख से ज़्यादा है।
वेतनभोगियों के बाद आयकर भरने वाला दूसरा सबसे बड़ा समुदाय व्यावसायियों और क़ारोबारियों का है। आयकर विभाग के एसेसमेंट, स्क्रूटनी, अपील और छापों का वास्ता सबसे ज़्यादा इन्हीं 3 से लेकर 4 लाख लोगों से पड़ता है, जिनकी कुल आमदनी 9.3 लाख करोड़ रुपये घोषित थी।
स्क्रूटनी के दायरे में कितने करदाता?
ज़ाहिर है कि 130 करोड़ के देश में ज़्यादा से ज़्यादा व्यवसायी समुदाय के तीन लाख लोग ही सरकार के नये प्लेटफ़ॉर्म के लक्ष्यों के मुताबिक़, ‘ईमानदार का सम्मान’ पाने वाले बन सकते हैं। अब चूँकि बीते 6 सालों में सरकार ने रिटर्न की स्क्रूटनी के मामलों को चार गुना घटा दिया है। इसका मतलब हुआ कि आयकर रिटर्न दाख़िल करने वाले कुल 5.78 करोड़ लोगों में से सिर्फ़ 1.5 लाख लोगों के मामले ही स्क्रूटनी में जाएँगे।
ख़ुद प्रधानमंत्री ने बताया है कि ‘वर्ष 2012-13 में जहाँ 0.94 फ़ीसदी टैक्स रिटर्न्स की स्क्रूटनी होती थी, वो वर्ष 2018-19 में घटकर 0.26 फ़ीसदी पर आ चुकी है।’ अब यदि आयकर विभाग को यह लगा कि इन डेढ़ लाख लोगों में से सारे के सारे टैक्स चोरी करने वाले हैं तो नये फ़ेसलेस सिस्टम के लाभार्थी यही डेढ़ लाख लोग बनेंगे और इन्हें ही फ़ेसलेस सिस्टम से अपनी ईमानदारी के लिए सम्मानित होने के मौक़े का फ़ायदा उठाना होगा। साफ़ है कि Faceless Assessment, Faceless Appeal और Taxpayers Charter की बातों के ज़्यादा से ज़्यादा सालाना डेढ़ लाख लाभार्थी ही हो सकते हैं।
बेशक़, नये सिस्टम में फ़ेसलेस वाले तत्व प्रगतिशील और सुधार का ही प्रतीक हैं। जबकि ‘टैक्सपेयर्स चार्टर’ वाले प्रावधान पुरानी व्यवस्था वाले ही हैं। टैक्सपेयर्स चार्टर के विस्तृत प्रावधानों में आयकर विभाग के छापों या सर्वे के वक़्त भी करदाता के अधिकार बाक़ायदा निर्धारित और निश्चित हैं। वही बातें अब भी क़ायम रहेंगी। नया कुछ नहीं है। दरअसल, आयकर विभाग पहली नज़र में सभी करदाताओं को ईमानदार मानकर ही चलता है। इसीलिए सबको सेल्फ़ एसेसमेंट की सुविधा मिलती है।
अभी तक एसेसमेंट और अपील का काम आयकर अधिकारी या आयकर ट्रिब्यूनल के सामने प्रत्यक्ष तौर पर करदाता से रूबरू होकर किया जाता था, लेकिन नयी फ़ेसलेस व्यवस्था में ये दोनों काम पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत और अप्रत्यक्ष बना दिये गये हैं।
यानी अब करदाता या उसके चार्टर्ड अकाउंटेंट को आयकर अधिकारियों से सेटिंग करके मामले को रफ़ा-दफ़ा करने का मौक़ा नहीं मिलेगा। क्योंकि पहले होता यह था आयकर अधिकारी उस रक़म की चोरी में हिस्सेदार बनकर करदाता से रुपये ऐंठते थे जिसे वास्तव में सरकारी ख़ज़ाने में जमा होना चाहिए था। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘तू डाल-डाल तो मैं पात-पात’ वाला सरकारी रिश्वतख़ोर सिस्टम नये प्लेटफ़ॉर्म की आँख में धूल झोंकने की क्या-क्या तरकीबें निकालेगा? सारी योजना की सफलता इसी यक्ष-प्रश्न के उत्तर में निहित रहेगी।
ब्याज की कमाई
2019 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक़, 34.01 लाख करोड़ रुपये वाली देश की कुल घोषित आमदनी में से 1.9 लाख करोड़ रुपये की हिस्सेदारी बैंकों के ब्याज से होने वाली कमाई की है। इस कमाई को पाने वालों में वेतनभोगी और व्यावसायी दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं। हालाँकि, ब्याज की कमाई करने वालों में वेतनभोगियों की हिस्सेदारी कहीं ज़्यादा है। चूँकि ब्याज भी टीडीएस के दायरे में है, इसीलिए वेतनभोगियों को ईमानदार टैक्स-पेयर्स माना जाता है। यह तबक़ा टैक्स बचाने के लिए जो उपाय अपनाता है, वो बाक़ायदा क़ानूनी होते हैं और टैक्स चोरी नहीं माने जाते।
एक बात और ध्यान रखने वाली है कि नया प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ़ इनकम टैक्स से सम्बन्धित है। इसका अप्रत्यक्ष कर या जीएसटी या सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क जैसे टैक्स के प्रशासन-तंत्र पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जबकि व्यावसायी समुदाय का वास्ता इन विभागों के अफ़सरों से कहीं ज़्यादा पड़ता है। यानी, जिन्हें सहूलियत देने की बातें हुई हैं, उन्हें भी राहत तो आंशिक ही मिलने वाली है। देश में आयकरदाताओं की संख्या कम है, क्योंकि अभी तक हमारी राजनीतिक इच्छा-शक्ति कृषि-आय को परिभाषित नहीं कर पायी है।
कृषि-आय पर टैक्स नहीं लगता। इसीलिए देश की बहुत बड़ी आबादी आयकर के दायरे से बाहर है। कृषि-आय की आड़ में अच्छी ख़ासी टैक्स चोरी को नकारा नहीं जा सकता। टैक्स चोरी का दूसरा ज्ञात क्षेत्र है हाउसिंग प्रॉपर्टी से होने वाली आमदनी। 2019 के आर्थिक सर्वे ने बताया था कि देश में सिर्फ़ 37,448 करोड़ रुपये की आमदनी ही हाउसिंग प्रॉपर्टी से प्राप्त होती है। विशेषज्ञों की नज़र में यह आमदनी बहुत कम है।
तीसरी गड़बड़ी उन टैक्स माफ़ी योजनाओं की वजह से है जिन्हें सरकारें हरेक दो-तीन साल पर लेकर आती रही हैं। इसी तरह, देश को अभी तक नहीं मालूम कि 2016 की नोटबन्दी के बाद जो काला धन बैंकों में पहुँचकर सफेद बन गया, उसके आँकड़ों से आयकर विभाग ने कितने नये टैक्सपेयर्स का इज़ाफ़ा किया और कितना टैक्स वसूला गया? यहाँ तक कि संसद भी इसकी सच्चाई से अंजान है।
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