सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा के हवाले से शाहीन बाग़ वालों में संविधान बचाओ आन्दोलन को जल्द बहाल करने की सुगबुगाहट है। इसी तर्ज़ पर क्या सोशल-डिस्टेंसिंग का जोख़िम उठाकर 30 अगस्त को मुहर्रम का जुलूस निकालने की इजाज़त माँगने, देने या नहीं देने को लेकर कहीं तनाव के हालात तो नहीं बन जाएँगे? ऐसे दौर में जब रोज़ाना क़रीब 65 हज़ार कोरोना पॉज़िटिव के मामले सामने आ रहे हों, जब स्कूल-कॉलेज निलम्बित हों और रेल-सेवा असामान्य हो, जब मेट्रो-सेवा शान्त हो, होटल-रेस्टोरेंट बन्द हों, जब मास्क अनिवार्य हो, तब क्या ऐसी बातें होना ठीक है कि जल्द ही ‘शाहीन बाग़’ की बहाली हो? संविधान बचाओ आन्दोलन के अगले दौर का वक़्त क्या अभी आने से फ़ायदा होगा? क्या सरकारें इसे होने देंगी? कहीं ये पुलिसिया सख़्ती को ‘आ बैल मुझे मार’ का सन्देश तो नहीं देगी?