कोरोना संकट से जूझते भारत में ‘पैकेज़’ की आड़ में 4 दिनों से सिर्फ़ भाषणों की बरसात और जुगलबन्दी हो रही है। वर्ना, क्या माननीय प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ये नहीं जानते कि ‘पैकेज़’ और ‘रिफ़ॉर्म’ में फ़र्क़ होता है? या फिर मोदी सरकार ने अघोषित तौर पर ‘रिफ़ॉर्म’ शब्द को बदलकर ‘पैकेज़’ कर दिया है?
वित्त मंत्री जी, किसानों को सपनों का पैकेज नहीं, बल्कि तुरंत राहत चाहिए
- विचार
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- मुकेश कुमार सिंह
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- 16 May, 2020


मुकेश कुमार सिंह
कोरोना संकट के कारण किसान, मजदूर सरकार से तुरंत राहत की उम्मीद लगाए बैठा है लेकिन उसे लंबे-चौड़े भाषणों के सिवा कुछ नहीं मिल रहा है। मोदी सरकार और वित्त मंत्री को ये कौन बताएगा कि खेती पर निर्भर देश की 60 फ़ीसदी आबादी एक से बढ़कर एक लोकलुभावन किस्म की योजनाओं की घोषणा के लिए नहीं बल्कि फ़ौरी मदद के लिए तरस रही है।
वैसे भी मोदी राज को योजनाओं और शहरों का नाम बदलने का ज़बरदस्त शौक़ रहा है। इसी तरह, क्या वित्त मंत्री भूल गयीं कि इसी साल उन्होंने लोकसभा में सबसे लम्बा बजट भाषण देने का रिकॉर्ड बनाया है? क्या वित्त मंत्री ये भी भूल गयीं कि संसद का बजट सत्र ख़त्म हो चुका है और यहाँ तक कि महामहिम राष्ट्रपति महोदय भी सत्रावसान को अधिसूचित कर चुके हैं?
मुकेश कुमार सिंह
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली