ग़रीब हो या अमीर, जब जनता 20 लाख करोड़ रुपये के सुहाने पैकेज वाले झुनझुने की झंकार सुनने को बेताब हो तब तीन दिनों से राहत कम और भाषण ज़्यादा बरस रहा है। कोरोना संकट से चरमराई अर्थव्यवस्था में जान फूँकने के लिए वित्त मंत्री ने लगातार दूसरे दिन अपना भानुमति का पिटारा खोला। पहले दिन मुख्य फ़ोकस लघु, छोटे और मझोले उद्योगों (एमएसएमई) पर रहा तो दूसरे दिन किसानों, प्रवासी मज़दूरों, रेहड़ी-पटरी वालों, मध्यम वर्ग के लिए रियायतों की घोषणा हुई। लेकिन वित्त मंत्री के पास मामूली रियायतें देने और नयी योजनाओं के एलान के सिवाय कुछ ख़ास नहीं था। ज़ाहिर है कुछ एलान अच्छे भी हैं, लेकिन ज़्यादातर बातें झुनझुना ही हैं।
20 लाख करोड़: तीन दिनों से राहत कम, भाषण ज़्यादा बरस रहा है
- विचार
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- 15 May, 2020

वैसे ‘आत्म-निर्भर’ का मतलब क्या है? यही कि हमें आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़े, देश की ज़रूरतें देश में ही उत्पादित सामानों से पूरी हों। मोटे तौर पर क्रूड ऑयल, सोना और रक्षा ख़रीदारी, यही तीन क्षेत्र हैं जहाँ भारत आत्म-निर्भर नहीं है। यही हमारा मुख्य और स्थायी आयात का क्षेत्र भी है। बाक़ी आयात की हिस्सेदारी बहुत छोटी है। इसीलिए, ‘आत्म-निर्भर भारत अभियान’ का असली मक़सद समझना मुश्किल नहीं है।
किसानों के लिए पैकेज
किसानों की सबसे बड़ी समस्याएँ हैं– खेती की लागत का अधिक होना, फ़सलों को बाज़ार नहीं मिलना, बाज़ार में उचित दाम नहीं मिलना। लेकिन इन तीनों ही मोर्चों के लिए वित्तमंत्री के पास कोई राहत नहीं थी। इसीलिए बीज-खाद जैसी लागत के लिए उन्हें कुछ नहीं सूझा। उनके पास किसानों के लिए क़र्ज़ और रियायती ब्याज का दायरा बढ़ाने के सिवाय और कुछ नहीं था। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के बाद 25 लाख नये किसान क्रेडिट कार्ड बने हैं। इन्हें मिलाकर 3 करोड़ किसानों को 4.22 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ बाँटा गया है। किसानों को पिछले क़र्ज़ों की किस्तें नहीं भरने से छूट भी 31 मई तक बढ़ायी गयी है। कृषि मंडियों के लिए राज्यों को 6700 करोड़ रुपये देने का पैकेज ज़रूर जारी हुआ है। इसी तरह, छोटे किसानों को रियायती क़र्ज़ देने के लिए पूर्व निर्धारित 90,000 करोड़ रुपये की योजना में 30,000 करोड़ रुपये और बढ़ाने का फ़ैसला लिया गया है। इससे उन 2.5 करोड़ किसानों को क़र्ज़ देने की कोशिश होगी जिनके पास किसान क्रेडिट कार्ड नहीं हैं।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली