प्रधानमंत्री ने 12 मई के अपने राष्ट्रीय संदेश में क्या-क्या कहा, ये तो अब तक आप जान ही चुके होंगे। मेरी बात उससे आगे की है। पहली तो यही कि 34 मिनट के भाषण में 2,000 से ज़्यादा शब्दों को पिरोकर जो कुछ कहा गया, उसे महज एक ट्वीट से भी कहा जा सकता है, तो फिर इतने बड़े आयोजन की क्या ज़रूरत थी?
ग़रीबों और मज़दूरों ने प्रधानमंत्री के ‘मन की’ तो सुनी, लेकिन उनकी ‘बात’ कहाँ थी!
- विचार
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- 13 May, 2020

मेनस्ट्रीम मीडिया तो ‘20 लाख करोड़ रुपये’ की संख्या से ही गदगद है। उसे इसमें किसी जुमले की बास नहीं आ रही है। वर्ना, वो कम से कम इतना तो जानने की कोशिश करता कि आख़िर चार महीने से राज्यों को उनका जीएसटी नहीं दे पाने वाली, शराब बेचकर ज़िन्दा रहने की जुगत लगाने वाली, पेट्रोल-डीज़ल पर 250 प्रतिशत तक टैक्स वसूलने वाली सरकार अपने पैकेज की रक़म लाएगी कहाँ से?
प्रधानमंत्री देश को बताना चाहते थे-
- कोरोना ने सिखाया है कि हम आत्मनिर्भर बनें।
- इससे चरामराई अर्थव्यवस्था में जान फूँकने के लिए सरकार 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज लाएगी।
- लॉकडाउन का चौथा दौर भी आएगा। ये नये रंग-ढंग वाला होगा। इसका ब्यौरा 18 मई से पहले दे दिया जाएगा।
चलिए मान लिया कि इन्हीं बातों को विस्तार से बताने के लिए देश के नेता का देश की जनता के नाम टीवी पर सम्बोधन बहुत ज़रूरी था, क्योंकि ऑडियो-वीडियो माध्यम की ख़ासियत ही यही है कि जनता को लगता है कि प्रधानमंत्री जी अपनी अति-व्यस्त दिनचर्या में से वक़्त निकालकर उसके घरों में आकर अपनी ‘मन की बात’ रख रहे हैं।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली