किसी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश की सेना का अराजनीतिक होना ज़रूरी है। लेकिन लगता है कि भारतीय सेना अब इस मान्यता से भटक चुकी है। तभी तो वो भी सरकार और इसके नेताओं की तरह झूठी बयानबाज़ी करने लगी है। अब साफ़ दिख रहा है कि 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई बर्बर झड़प को लेकर भारत सरकार, सेना और विदेश मंत्रालय, ने सामूहिक रूप से देश को ग़ुमराह किया है।
भारतीय सैनिक चीन के कब्जे में हैं, यह बात जनता से क्यों छुपाई गई?
- विचार
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- 20 Jun, 2020

सेना और विदेश मंत्रालय ने दावा किया था कि कोई भी जवान ‘लापता’ नहीं है लेकिन चीन द्वारा दस भारतीय जवानों को रिहा करने के बाद दोनों की किरकिरी हो रही है। साफ है कि इस मामले में सेना और विदेश मंत्रालय, दोनों ने सामूहिक रूप से देश को ग़ुमराह किया है। दूसरी ओर, चीन पूरी रणनीति के साथ आया है तो फिर क्या सैनिक और राजनयिक स्तर की बातचीत से विवाद को सुलझाने का कोई सुनियोजित ढोंग चल रहा है?
वरना, बर्बर झड़प के बाद ‘लापता नहीं हुए’ भारतीय सेना के दो मेज़र समेत दस जवानों की युद्धबन्दियों की तरह रिहाई कैसे हो जाती? जबकि सेना और विदेश मंत्रालय ने एक दिन पहले ही तो दावा किया था कि 20 सैनिकों की जान गंवाने और क़रीब 80 जाँबाजों के ज़ख्मी होने के बावजूद हमारा कोई जवान ‘लापता’ नहीं है।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली