भारत में बीते दो महीने से कोरोना से जूझने के लिए जो कुछ भी हो रहा है, उस पर सिर्फ़ नौकरशाही और सरकार की नज़र है।
कोरोना संकट पर संसद ख़ामोश क्यों? सत्र बुलाओ, जवाबदेही तय हो!
- विचार
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- 25 May, 2020

क्या संसद को कोरोना की आफ़त और सामने आयी बेरोज़गारी, भुखमरी और जर्जर चिकित्सा तंत्र जैसे मुद्दों पर बहस नहीं करनी चाहिये? क़रीब 15 करोड़ किसान और 12 करोड़ प्रवासी मज़दूरों की तकलीफ़ों की चीत्कार क्या संसद में नहीं गूँजनी चाहिये?
कोरोना संकट को परखने के लिए हमारी संसद अभी तक आगे नहीं आयी है। जबकि इसी दौरान दुनिया भर के सौ से ज़्यादा देशों की संसद ने अपनी आवाम की तकलीफ़ों को लेकर अपनी-अपनी सरकारों के कामकाज का हिसाब लिया है। लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की पाबन्दियों को देखते हुए ऐसे संसद सत्रों को सीमित सांसदों की मौजूदगी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग वाली तकनीक का सहारा लेकर ‘वर्चुअल पार्लियामेंट्री सेशन’ की तरह ही आयोजित किया गया।
लॉकडाउन के बावजूद न्यायपालिका, ख़ासकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट, यदि आंशिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं, तो संसद क्यों नहीं? चन्द रोज़ पहले कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने ट्वीट में ब्रिटिश संसद का हवाला देते हुए कहा था कि यदि वहाँ संसद का ‘वर्चुअल सेशन’ बुलाया जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं?
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली