लॉकडाउन के दो महीनों में देश की आर्थिक गतिविधियाँ दम तोड़ चुकी हैं। इनका मूल्य लगभग शून्य हो चुका है। भविष्य को लेकर बेहद अनिश्चितता है। साफ़ दिख रहा है कि आर्थिक गतिविधियों को सामान्य होने में लम्बा वक़्त लगेगा। 21 लाख करोड़ रुपये के ‘आत्म-निर्भर भारत मिशन’ के एलान का 90 फ़ीसदी यानी 19 लाख करोड़ रुपये महज फंड या आवंटन है।
सरकार ख़ज़ाना खाली करे तभी आईसीयू से बाहर निकल पाएगी अर्थव्यवस्था
- विचार
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- 22 May, 2020

लॉकडाउन से चरमराई अर्थव्यवस्था के लिए 21 लाख करोड़ रुपये के कुल एलान में से राहत पर ख़र्च हुई रक़म महज दो लाख करोड़ रुपये ही है। 130 करोड़ की आबादी के लिए ये रक़म प्रति व्यक्ति क़रीब 1,538 रुपये बैठती है। इसे पाँच-छह महीने के संकट काल में बाँटा जाए तो बात 300 रुपये महीना या रोज़ाना दस रुपये से ज़्यादा नहीं बैठेगी।
ये फंड भले ही काफ़ी बड़ा दिखे लेकिन इसमें सरकारी ख़र्चों का कोई खाक़ा नहीं है। इसीलिए मौजूदा वित्त वर्ष के बाक़ी बचे दस महीनों में हमें इस फंड का बेहद मामूली असर भी तभी दिखाई देगा जब अर्थव्यवस्था आईसीयू (सघन चिकित्सा इकाई) से बाहर आएगी। ऐसा कब और कैसे होगा? इसे समझना भी ज़्यादा मुश्किल नहीं है। अभी असली दारोमदार सरकारी ख़र्चों पर है, क्योंकि सिर्फ़ सरकार ही गाँठ में पैसा नहीं होने के बावजूद ख़र्च कर सकती है।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली