सरकारें जब जनता के आक्रोश से डरने लगती हैं तब तरह-तरह के भ्रम फैलाती हैं। इन्हें अब साफ़ दिख रहा है कि कोरोना संकट से जुड़ी उसकी रणनीतियाँ औंधे मुँह गिर चुकी हैं। समाज के विशाल तबक़े तक सरकारी दावों और इरादों का ज़मीनी सच बेपर्दा होकर पहुँच रहा है। उधर, सरकारी नाकामियों पर पर्दा डालकर जनता को बरगलाने के लिए वित्तमंत्री जैसे सर्वोच्च स्तर से आये दिन नये-नये भ्रम फैलाये जा रहे हैं।
वित्तमंत्री की ग़लतबयानी कि सरकार को नहीं पता प्रवासी मज़दूरों की संख्या
- विचार
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- 29 May, 2020

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण क्यों कहने लगी हैं कि प्रवासी मज़दूरों से सम्बन्धित कोई आँकड़ा देश में है क्या? वह कहती हैं कि बग़ैर आँकड़ों के सरकार ये कैसे तय कर सकती है कि उसे किन-किन लोगों तक मदद पहुँचानी है? माना कि 2014 से पहले तक देश ‘निकम्माकाल’ में रहा। लेकिन बीते छह साल की कर्मठता में तो कोई कसर नहीं हो सकती। फिर भी प्रवासी मज़दूरों का डाटाबेस क्यों नहीं बना?
14 मई को जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन प्रवासी मज़दूरों के लिए कोरोना राहत पैकेज का ब्यौरा दे रही थीं, तब उन्हें अनुमान था कि देश में प्रवासी मज़दूरों की क्या तादाद है? लेकिन लगातार पाँच दिनों तक पैकेजों का पिटारा खोलने के बावजूद वित्तमंत्री के ख़ज़ाने से राहत के नाम पर 21 में से सिर्फ़ 2 लाख करोड़ रुपये ही निकले।
हालात जब ‘काटो तो ख़ून नहीं’ वाले हो गये तो 20 मई को वित्तमंत्री के मीडिया मैनेजरों ने एक के बाद एक, कई मीडिया संस्थानों को बुलाकर उन्हें अलग-अलग इंटरव्यू देने की बौछार कर दी। अब तक प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा को लेकर देश भर से तमाम ऐसी ख़बरें आने लगी थीं जो किसी का भी दिल-दहला दें। लिहाज़ा, डैमेज कंट्रोल ने लिए वित्तमंत्री ने सरकार के चिर-परिचित हथकंडे का इस्तेमाल किया गया। वित्तमंत्री कहने लगीं कि ‘मैं किसी को दोष नहीं देना चाहती लेकिन बताइए कि प्रवासी मज़दूरों से सम्बन्धित कोई आँकड़ा देश में है क्या? कहाँ है? बग़ैर आँकड़ों के सरकार ये कैसे तय कर सकती है कि उसे किन-किन लोगों तक मदद पहुँचानी है?’
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली