क्या डोनाल्ड ट्रंप की विचारधारा और उनकी राजनीतिक शैली नव मध्ययुगीन साम्राज्यवाद की ओर इशारा कर रही है? जानिए उनकी छवि और नीतियाँ दुनिया को कैसे प्रभावित कर रही हैं।
अगर जनता महंगाई, रोजगार और अच्छी शिक्षा के लिए संघर्ष करती, तो सरकार को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ रोकने के लिए भी दबाव में होती। क्या लोग सड़क पर उतरते से ऐसी जानलेवा लापरवाहियाँ हो पातीं?
जाति मुक्त भारत एक बड़ी चुनौती है। लेकिन जब कोई पार्टी और सरकार विपक्ष मुक्त भारत में लगी हो तो उसकी प्राथमिकताएं भी कुछ और हो जाती हैं। देश में दलितों पर बढ़ता अत्याचार उनकी इसी प्राथमिकता की ओर इशारा कर रहा है। प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक रामशरण जोशी की टिप्पणीः
श्रमिक, किसान, कर्मचारी और प्रोफ़ेशनल किसके लिए 90–90 घंटे काम करे? क्या इसलिए कि पूंजीपति टैक्स न चुकाएँ, बैंकों का पैसा लेकर भाग जाएँ? क्या देश ऐसे नंबर वन बनेगा?
दुनिया भर में मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारों के जनक और उदारीकरण के पक्षधर के तौर पर जाना जाता है। तो वह आख़िर किस तरह के अर्थव्यवस्था और उदारीकरण की वकालत करते थे? जानिए, रामशरण जोशी उनको कैसे याद करते हैं।
आंबेडकर पर अमित शाह के बयान से क्या संदेश जाता है? क्या वह सवर्ण श्रेष्ठता दिखा रहे हैं? आंबेडकर के अलावा भगवान्, सात जन्म और स्वर्ग के नाम लेकर क्या गृहमंत्री लम्बे समय तक विवादों में नहीं घिर गए?
अभिनेता राज कपूर के जन्म शती वर्ष पर कपूर खानदान ने पीएम मोदी के साथ मुलाक़ात की। जानिए, नेहरू काल में राज कपूर का फिल्मी सफर कैसा था और किस तरह की फिल्में समाज का आईना दिखाती थीं।
जब बोफोर्स तोपों के सौदे में घूस का बवाल खड़ा किया जा सकता है, तब सोरोस कांड को भी उजागर किया जा सकता था। लेकिन, भाजपा के नेता खामोश रहे। पर अडानी कांड का विस्फोट होते ही सोरोस को क्यों उछाल दिया गया?
क्या प्रतीकों के युद्ध और इतिहास में हुए अन्यायों को पुनर्जीवित कर विश्व की तीसरी ‘आर्थिक शक्ति’ बन सकते हैं? 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्ज़िद के ध्वस्त होने के बाद देश की मूलभूत समस्याओं का हल हो सका है?
क्या सत्तारूढ़ हिंदुत्ववादी शक्तियाँ इतिहास के इस कटु यथार्थ से कोई सबक़ लेंगी या सत्ता में बने रहने के लिए ’बँटोगे तो कटोगे’ का हथियार चलाते हुए देश को अशांति की अग्नि में झोंकती रहेंगी?
डोनाल्ड ट्रम्प को चरम दक्षिणपंथी, स्त्री विरोधी, गर्भपात विरोधी और सुपर रिच समर्थक माना जाता है, फिर भी वह इलेक्टोरल और पॉपुलर वोट में जीत गए। इसका क्या मतलब है। पढ़िए, रामशरण जोशी की त्वरित टिप्पणी...
अमेरिकी समाज का बुरी तरह से ध्रुवीकरण हो चुका है। यदि आप ट्रम्प समर्थक नहीं और ‘अमेरिका को महान’ नहीं बनाना चाहते हैं तो राष्ट्र विरोधी हैं। तो क्या भारत और अमेरिका के चुनाव प्रचार में अब ज़्यादा फर्क नहीं रहा?
एक तरफ मोदी सरकार का दावा है कि वह 81 करोड़ लोगों का पेट भर रही है और चुनाव जीत भी रही है। लेकिन, फिर भी हम भूख तालिका में क्यों नीचे की तरफ़ फिसलते जा रहे हैं? कुछ तो वज़ह होगी?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से हम इतने फिक्रमंद क्यों हैं कि किसको कितना अधिक चंदा मिला है? किसका लोकप्रियता का ग्राफ कितना गिरा -बढ़ा है? किसने भारत के बारे में क्या कहा?
ट्रंप की लोकप्रियता आख़िर किन लोगों में है? क्या आपको पता है कि श्वेत कचरा, नमूना कचरा, मिट्टी खोर, आलसी, ज़ाहिल, फालतू लोग, पहाड़ी भोंदू जैसे उपनाम अमेरिका में धड़ल्ले से इस्तेमाल होते हैं और ज़्यादातर ऐसे लोग किनके समर्थक हैं?