विख्यात इंफोसिस के सुप्रीमो रमेश नारायण मूर्ति का उवाच है कि अब कर्मचारियों से 70 घंटे काम लिया जाना चाहिए। उनकी तान में तान मिलाते हुए प्रसिद्ध एल एंड टी के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन का नायाब प्रस्ताव है कि विश्व में भारत को ’नंबर वन’ बनाने के लिए कर्मचारियों से 90 घंटे काम लिया जाना चाहिए। दोनों के अजीबों गरीब तर्क हैं। नारायण मूर्ति स्वयं को करुणाशील पूंजीपति कहते हैं, लेकिन साथ ही वामपंथी भी मानते हैं। वहीं, सुब्रह्मण्यन हास्यास्पद तर्क के साथ कहते हैं कि कर्मचारियों को रविवार के रोज़ भी काम करना चाहिए क्योंकि वे अपने घरों में पति–पत्नी कब तक परस्पर घूरते रहेंगे?
क्या देश श्रम गुलामी काल में लौट रहा है? ऐसा अमृतकाल!
- विचार
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- 13 Jan, 2025

श्रमिक, किसान, कर्मचारी और प्रोफ़ेशनल किसके लिए 90–90 घंटे काम करे? क्या इसलिए कि पूंजीपति टैक्स न चुकाएँ, बैंकों का पैसा लेकर भाग जाएँ? क्या देश ऐसे नंबर वन बनेगा?
दोनों पूंजीपतियों या कॉरपोरेटपतियों के उवाचों ने सामान्य जन और बौद्धिक जगत को हिला कर रख दिया है; बहस है कि क्या 21वीं सदी में 19वीं व 20वीं सदी के मध्य काल के श्रम घंटों के सुझाव देना उचित है; कहीं भारत को बीती सदियों की श्रम बर्बरता की खंदकों में धकेलने की कोशिशें तो नहीं हो रही हैं; क्या कृत्रिम बुद्धि के काल 90 घंटे का सुझाव विरोधाभास का प्रतीक है; कहीं बेगार को परोक्ष रूप से पुनर्जीवित करने की साजिश तो नहीं है; क्या कॉरपोरेटपति अपने लालच व मुनाफे पर लगाम लगाने के लिए तैयार हैं; क्या सीईओ अपनी करोड़ों की पगारों को वांछित स्तर पर कम करेंगे?