बॉलीवुड के बहुआयामी अभिनेता राज कपूर का जन्म शती वर्ष (14 दिसंबर, 1924 - 2 जून 1988) शरू हो चुका है। पिछले ही दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके निवास पर दिवंगत राज कपूर का खानदान मिला था। इस अवसर की तस्वीर मीडिया की सुर्ख़ियों में थी। संयोग यह भी है कि चलचित्र जगत के शोमैन राज कपूर के सबसे चहेते प्रगतिशील कथाकार ख्वाज़ा अहमद अब्बास की भी 110वीं जयंती (7 जून 1914 - 1 जून 1987) भी जश्न -ए -क़लम द्वारा मनाई जा रही है। संयोग से, इस मौक़े पर दिल्ली में ही भारत विभाजन पर उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘सरदारजी’ का एकल मंचन किया गया था। ऐसे क्षणों में, इस अस्सी पारी पत्रकार के मन-मस्तिष्क - पटल पर आर.के. प्रोडक्शन की श्वेत-श्याम फिल्मों का नोस्टाल्जिया छा गया।
नेहरू काल में राज कपूर: बदलेगा ज़माना ये सितारों पर लिखा है!
- विविध
- |
- |
- 15 Dec, 2024

अभिनेता राज कपूर के जन्म शती वर्ष पर कपूर खानदान ने पीएम मोदी के साथ मुलाक़ात की। जानिए, नेहरू काल में राज कपूर का फिल्मी सफर कैसा था और किस तरह की फिल्में समाज का आईना दिखाती थीं।
यह दौर लेखक की किशोर अवस्था का था। दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद की त्रिमूर्ति किशोर-किशोरियों के मन-मस्तिष्क पर कब्ज़ा किये रहती थी। इसके बाद किसी अन्य का स्थान था तो वह ‘चाचा नेहरू’ का था। साहित्य ही नहीं, फिल्में भी समाज का चलता-फिरता दर्पण होती हैं। समकालीनता के अभाव में फिल्में पिट भी जाती हैं, और हिट भी रहती हैं। राज कपूर की फिल्मों में तत्कालीन समाज की धड़कनें सुनाई देती हैं। यह नेहरू का दौर था जब भारत औपनिवेशिक काल से मुक्त हो कर स्वतंत्रता के काल में प्रवेश कर चुका था। देश- विभाजन के दर्द की विरासत लिए संक्रमण काल के गलियारों से जनता और नेहरू-नेतृत्व गुज़र रहा था। पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के लाखों विस्थापितों की दारुणिक कथाएं गूँज रही थीं शहरों और कस्बों में। ज़ख़्मी देश के जिस्म पर मरहम कैसे लगे, इस नज़रिये से बॉलीवुड की फ़िल्मों ने निश्चित चमत्कारिक भूमिका निभाई थी; राज की फिल्में अग्रिम कतार में रहीं। इस जगह यह भी याद दिलाना समीचीन रहेगा कि नेहरू -युग की आधारभूत गूँजें थीं - बहुलतावाद, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और मिश्रित अर्थव्यवस्था। इन मूल्यों की अनुगूंजें कपूर फिल्मों में सुनाई देंगी।