संसद का शीतकालीन सत्र मोदी+ अडानी पर कुरु कुरु स्वाहा होता प्रतीत होता है।
अडानी के सवाल पर सरकार कब तक भागती रहेगी?
- विचार
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- 10 Dec, 2024

जब बोफोर्स तोपों के सौदे में घूस का बवाल खड़ा किया जा सकता है, तब सोरोस कांड को भी उजागर किया जा सकता था। लेकिन, भाजपा के नेता खामोश रहे। पर अडानी कांड का विस्फोट होते ही सोरोस को क्यों उछाल दिया गया?
आज़ाद भारत की 75 -वर्षीय यात्रा में संभवतया यह पहला पड़ाव है जब सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष का एक बड़ा हिस्सा देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट घराने की रक्षा में तैनात दिखाई दे रहा है। संसद के अंदर और बाहर, दोनों पक्षों का राजनैतिक प्रतिष्ठान एकाधिकार कॉरपोरेट सुप्रीमो गौतम अडानी की निर्लज्जता के साथ हिफाज़त में जुटा हुआ है। इस पत्रकार के ज्ञात इतिहास में ऐसा पहला अवसर है जब देश के सर्व शक्तिमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कॉरपोरेट घराने के सुर्प्रीमो की यारी -दोस्ती इतनी विस्फोटक बनी है। इससे पहले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के शासन काल तक ( 1952 -2014 ) किसी भी प्रधानमंत्री का नाम किसी एक एकाधिकारवादी पूंजीपति घराने के साथ इस क़दर विवादास्पद ढंग से नहीं जुड़ा था। यह भी पहला अवसर है जब कांग्रेस, वामपंथी दल, और कुछ अन्य दलों को छोड़ कर, शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव जैसे दिग्गज विपक्षी नेता भी अडानी के प्रति उदारभाव दिखाने से चूकते नहीं रहे हैं।
यह कम हैरतअंगेज़ नहीं है कि पहली बार मोदी+अडानी जोड़ी और भारत को परस्पर पर्याय के रूप में चित्रित किया जा रहा है! 1975-76 में ‘इंदिरा भारत है, भारत इंदिरा है’ जैसा नारा उछला था। लेकिन, इस दौर में एक झटपटिया एकाधिकार कॉरपोरेटपति के विवादास्पद कारनामों के भंडाफोड़ और कड़ी आलोचना को देश की अर्थ व्यवस्था के उत्थान-पतन से जोड़ा जा रहा है। इतना ही नहीं, विपक्ष के आलोचकों, मूलतः राहुल गांधी को ‘गद्दार व देशद्रोही’ बतलाया जाता है।