अमेरिका में जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव की घड़ी पास आ रही है, वैसे वैसे शिखर पद के दावेदार नेताओं का असली रंग खिलता जा रहा है। मतदान के फ़क़त तीन दिन रह गए हैं; डेमोक्रेट पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन के डोनाल्ड ट्रम्प आमने-सामने चुनावी अखाड़े में जमे हैं। जीत के लिए निम्नस्तर की वाक -पैंतरेबाज़ी जितनी सम्भव है, उम्मीदवार अपनाने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं। इस लिहाज़ से, पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प और उनकी चुनावी टीम अपनी विरोधी कमला हैरिस से कुछ क़दम आगे ही हैं। प्रचार के अंतिम चरण में अमेरिका की सबसे पुरानी रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी ट्रम्प ने भारतवंशियों के ध्रुवीकरण का हथकण्डा अपना लिया है।
‘तुम भी हम जैसे निकले’, यांकी!
- विचार
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- 3 Nov, 2024

अमेरिकी समाज का बुरी तरह से ध्रुवीकरण हो चुका है। यदि आप ट्रम्प समर्थक नहीं और ‘अमेरिका को महान’ नहीं बनाना चाहते हैं तो राष्ट्र विरोधी हैं। तो क्या भारत और अमेरिका के चुनाव प्रचार में अब ज़्यादा फर्क नहीं रहा?
पिछले दिनों बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए कुछ हमलों के बहाने से इस हथकण्डे का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। अमेरिका में क़रीब पचास लाख के आस -पास भारतवंशी या अनिवासी भारतीय हैं। विगत के 2016 और 2020 के चुनावों में भारतवंशी समुदाय तकरीबन ट्रम्प के साथ था। लेकिन, इस दफ़ा तस्वीर बदली हुई है। लेकिन, अब यह समुदाय विभाजित है और इसका एक बड़ा भाग भारतवंशी कमला हैरिस का समर्थन कर रहा है। ट्रम्प की यह दुखती रग उनके ताज़ा उवाच में फट पड़ी है: बांग्लादेश में हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों पर हिंसा बर्बर है, पूरी अराजकता फैली हुई है। निश्चित ही ताज़ा ट्रम्प -उवाच से भारतवंशियों में कुछ हमदर्दी पैदा हो सकती है। लेकिन, हिंसा की घटनाओं पर ट्रम्प अब तक खामोश क्यों रहे? हमले अगस्त में हुए थे। प्रचार के अंतिम चरण में इस मुद्दे को उछालने का एक ही मक़सद हो सकता है कि आप्रवासी हिन्दुओं और अन्य समुदायों में ट्रम्प अपनी ज़मीन को खिसकती-सी महसूस करने लगे हों। इसलिए ध्रुवीकरण का शस्त्र चलाया जा रहा है।