डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
‘व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षा विधेयक’ के क़ानून बनने के बाद सरकार को निरंकुश अधिकार मिल जाएंगे और वह किसी भी व्यक्ति या संगठन की जासूसी कर सकेगी। इससे पहले पेगासस जासूसी मामले को लेकर खासा हंगामा हो चुका है।
आंदोलनकारी किसान नेता क्यों कह रहे हैं कि जब तक संसद स्वयं इस क़ानून को रद्द नहीं करेगी, यह आंदोलन चलता रहेगा? क्या उन्हें लग रहा है कि सरकार दांव पेंच दिखाकर कृषि-क़ानूनों को बनाए रखेगी?
पत्रकारिता के क्या मायने हैं? लोकतंत्र का इसे चौथा खंभा क्यों कहा जाता है? जानिए, फिलीपींस की महिला पत्रकार मारिया रेसा और रूस के पत्रकार दिमित्री मोरातोव को नोबेल पुरस्कार क्यों दिया गया।
पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सब्जियाँ आख़िर फलों के दाम क्यों बिक रही हैं और फल ग्राहकों की पहुँच के बाहर क्यों हो रहे हैं? जानिए देश में महंगाई का क्या हाल है।
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने यह कहकर विवाद छेड़ दिया है कि वे 'जी हुजूर-23' नहीं हैं। क्या इस वक़्त बीजेपी और कांग्रेस का अंदरुनी हाल एक-जैसा होता जा रहा है?
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री ने बीजेपी नेता अमित शाह से क्यों मुलाक़ात की? क्या अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए जिस तरह मजबूर किया गया उसका बदला लेंगे?
अफ़ग़ानिस्तान पर भारत की विदेश नीति क्या है? शांघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान में सर्वसमावेशी सरकार और आतंक-मुक्ति की बात पर जोर दिया। लेकिन इसमें नया क्या है?
अमेरिकी वापसी के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में शांति की उम्मीद कम क्यों दिखाई देती है? कई गुटों में भिड़ंत की आशंका है। हथियारों का जो ज़खीरा अमेरिकी अपने पीछे छोड़ गए हैं, वह कई नए हिंसक गुट पैदा कर देगा।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जो विधेयक प्रस्तावित किया है, उसकी आलोचना विपक्षी दल इस आधार पर कर रहे हैं कि यह मुसलिम विरोधी है।
भारत की विदेश नीति कैसी है? अफ़ग़ानिस्तान में भारत की हालत अजीब-सी हो गई है। तीन अरब डॉलर वहाँ खपानेवाला और अपने कर्मचारियों की जान कुर्बान करनेवाला भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्टूबर में मांग की थी कि कोरोना के टीके का एकाधिकार ख़त्म किया जाए और दुनिया का जो भी देश यह टीका बना सके, उसे यह छूट दे दी जाए।
बंगाल में दर्जन भर कार्यकर्ता आपस में लड़ मरे, वह नेताओं के लिए पहला राष्ट्रीय संकट बन गया लेकिन चार हजार लोग कोरोना से मर गए, इसकी कोई चिंता उन्हें दिखाई नहीं पड़ी।
यह संतोष का विषय है कि भारत में कोरोना मरीजों के लिए नए-नए तात्कालिक अस्पताल दनादन खुल रहे हैं, ऑक्सीजन एक्सप्रेस रेलें चल पड़ी हैं, कई राज्यों ने मुफ्त टीके की घोषणा कर दी है, कुछ राज्यों में कोरोना का प्रकोप घटा भी है।
भारत में फैले कोरोना की प्रतिध्वनि सारी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। अमेरिका से लेकर सिंगापुर तक के देश चिंतित दिखाई पड़ रहे हैं। जो अमेरिका कल-परसों तक भारत को वैक्सीन या उसका कच्चा माल देने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था, उसका रवैया थोड़ा नरम पड़ा है।