फिलीपींस की महिला पत्रकार मारिया रेसा और रूस के पत्रकार दिमित्री मोरातोव को नोबल पुरस्कार देने से नोबेल कमेटी की प्रतिष्ठा बढ़ गई है, क्योंकि आज की दुनिया अभिव्यक्ति के भयंकर संकट से गुजर रही है। इन दोनों पत्रकारों ने अपने-अपने देश में शासकीय दमन के बावजूद सत्य का खांडा निर्भीकतापूर्वक खड़काया है। जिन देशों को हम दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्र कहते हैं, ऐसे देश भी अभिव्यक्ति की आज़ादी के हिसाब से एकदम फिसड्डी-से दिखाई पड़ते हैं। ‘विश्व प्रेस आज़ादी तालिका’ के 180 देशों में फिलीपींस का स्थान 138वाँ है और भारत का 142वाँ! यदि पत्रकारिता किसी देश की इतनी फिसड्डी हो तो उसके लोकतंत्र का हाल क्या होगा?