प्रसिद्ध ब्रिटिश विचारक जाॅन स्टुअर्ट मिल ने लिखा था कि देर से किया गया न्याय तो अन्याय ही है। हमारे देश में आज भी अंग्रेजों की चलाई हुई न्याय-पद्धति ही चल रही है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं लेकिन भारत में एक भी प्रधानमंत्री ऐसा पैदा नहीं हुआ, जो विश्व की सबसे प्राचीन न्याय-पद्धति, जो कि भारतीय ही है, को लागू करने की कोशिश करता।
अदालतों में भारतीय भाषाएं चलेंगी तभी जल्दी मिलेगा न्याय
- विचार
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- 6 Dec, 2021

यदि अदालतों में भारतीय भाषाएं चलेंगी तो मुवक्किलों को बहस और फैसले समझना भी आसान होगा और उनकी ठगाई भी कम होगी। लेकिन यह क्रांतिकारी परिवर्तन करने की हिम्मत कौन कर सकता है? वही नेता कर सकता है, जो अपनी हीनता-ग्रंथि का शिकार न हो और जिसके पास भारत को महाशक्ति बनाने की दृष्टि हो।
इसका दुष्परिणाम है कि आज भारत की अदालतों में लगभग पांच करोड़ मुकदमे लटके पड़े हुए हैं। जो न्याय कुछ ही दिनों में मिल जाना चाहिए, उसे मिलने में तीस-तीस और चालीस-चालीस साल लग जाते हैं।
कई मामलों में तो जज, वकील और मुकदमेबाज- सभी का निधन भी हो जाता है। कई लोग बरसों-बरस जेल में सड़ते रहते हैं और जब उनका फैसला आता है तो मालूम पड़ता है कि वे निर्दोष थे।