वक्फ विधेयक पर राजनीतिक तस्वीर अब बिल्कुल साफ हो गई है। जेडीयू जिसने पहले इसका समर्थन किया था, अब पूरी तरह इस विधेयक के खिलाफ है। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने मुस्लिम संगठनों से कहा है कि वे भी इस विधेयक के विरोध में हैं। भाजपा के अंदर से भी इस विधेयक को लेकर विरोध है। जानिए ताजा घटनाक्रमः
मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने वक्फ विधेयक संसद में पेश किया, लेकिन उसको पीछे हटना पड़ गया। आख़िर ऐसा क्यों? क्या टीडीपी जैसे दलों से दबाव है? जानिए टीडीपी के मुस्लिम विधायक क्या कहते हैं।
वक्फ बिल लाने से पहले देश में वक्फ के खिलाफ जबरदस्त माहौल बनाया गया। भाजपा के तोपची चैनलों, अखबारों, रेडियो से लेकर सोशल मीडिया पर वक्फ संपत्ति के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हुए थे। संसद में यह बिल गुरुवार को पेश किया गया और विपक्ष के भारी दबाव और एनडीए के सहयोगी दलों के रुख को देखते हुए बिल संसदीय समिति को भेज कर केंद्र सरकार ने पीछा छुड़ा लिया। लेकिन यूपी से लेकर दिल्ली तक इस सरकार की हिन्दू-मुसलमान करने की नीयत का भंडाफोड़ लगातार हो रहा, इसके बावजूद यह पार्टी सबक नहीं ले रही है।
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संसद में बीजेपी को अहसास हो गया है कि अब बीजेपी के पास बहुमत नहीं है । लिहाज़ा नहीं चलेगी दादागिरी । मानना पड़ा वक़्फ़ बिल पर सहयोगी दलों का दबाव । बिल भेजा गया संयुक्त संसदीय समिति को । क्यों हारी मोदी सरकार ? आशुतोष के साथ चर्चा विजय त्रिवेदी, विनोद अग्निहोत्री, जावेद अंसारी और शीतल पी सिंह ।
क्या तेलुगू देशम पार्टी यानी टीडीपी ने मोदी सरकार के साथ खेल कर दिया? क्या टीडीपी के बदले रुख़ ने उसे वक्फ़ विधेयक को संसदीय समिति भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा? क्या
एनडीए सरकार के विवादित बिल पर भले ही जेडीयू का समर्थन हासिल था लेकिन चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने जब कह दिया कि उनका सशर्त समर्थन इस बिल को है तो सरकार को कदम पीछे हटाने पड़े और इससे संसदीय समिति के पास भेजना पड़ा। हालांकि टीडीपी के बयान को मीडिया प्रमुखता से पेश नहीं कर रहा है। मीडिया यही बता रहा है कि जेडीयू और टीडीपी का समर्थन इस बिल को था। लेकिन टीडीपी का समर्थन सशर्त था, इतना ही सरकार को झुकाने के लिए पर्याप्त था।