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बिहारः मुसलमानों ने नीतीश कुमार के इफ्तार निमंत्रण को क्यों ठुकराया?

वक्फ संशोधन बिल के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत आठ प्रमुख मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने रविवार 23 मार्च को होने वाली मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दावत-ए-इफ्तार के बायकॉट की घोषणा की है। यह दावत मुख्यमंत्री आवास पर होने वाली है। 

तीन दिन बाद यानी 26 मार्च को इन्हीं संगठनों ने पटना में वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ विशाल धरना देने की घोषणा की है। इससे पहले 17 मार्च को मुस्लिम संगठनों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर इस बिल के खिलाफ धरना दिया था जिसमें देश के प्रमुख विपक्षी दल के नेता भी शामिल हुए थे। 

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दिलचस्प बात यह है कि हिंदी अखबारों के साथ-साथ उर्दू अखबारों ने भी नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी के बायकॉट की घोषणा की खबर पूरी तरह ब्लैकआउट कर दी गई है। मीडिया पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि दरअसल संपादकों को विज्ञापन खोने का डर रहता है इसलिए वह ऐसी कोई खबर नहीं छापते जिसमें नीतीश कुमार का इस तरह खुल्लमखुल्ला विरोध किया गया हो।

इन संगठनों ने हर वर्ग से अपील की है कि वह वक्फ संशोधन बिल के विरोध में अपनी जिम्मेदारी का सबूत देते हुए किसी भी हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दावत-ए-इफ्तार में शामिल न हों।

इस बारे में इन संगठनों की ओर से नीतीश कुमार को खुला पत्र लिखा गया है। इस पत्र में कहा गया है कि यह फैसला उनकी पार्टी की ओर से प्रस्तावित वक्फ संशोधन बिल 2024 के समर्थन के खिलाफ विरोध के तौर पर लिया गया है। 

पत्र लिखने वाले संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा हिंद (अरशद मदनी, महमूद मदनी), जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद, खानकाह मुजीबिया और खानकाह रहमानी शामिल हैं।

इन संगठनों ने नीतीश कुमार से कहा है कि उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शासन और अल्पसंख्यकों के अधिकार की रक्षा के वादे पर सत्ता हासिल की थी लेकिन फिर ‘अतार्किक व असंवैधानिक’ वक्फ संशोधन बिल को उनकी पार्टी ने समर्थन दे दिया जो उन्हीं वादों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। 

बताना जरूरी है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के मुंगेर से लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने इस बिल का लोकसभा में समर्थन किया था जिसकी वजह से मुस्लिम समुदाय में भारी रोष पाया जाता है। लोकसभा में अपने भाषण में ललन सिंह ने वक्फ बोर्डों को निरंकुश तक बताया था और दावा किया था कि इससे मुसलमान को कोई नुकसान नहीं होगा। बाद में जब मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उनसे मुलाकात की तब भी उनका रवैया बेहद रूखा था और उन्होंने इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय के समर्थन का कोई वादा नहीं किया।

यही नहीं प्रमुख मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने नीतीश कुमार से भी इस बारे में मुलाकात की लेकिन उनकी बात का कोई फायदा नहीं हुआ। वक्फ संशोधन बिल के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में जब मुस्लिम समुदाय की सभी बातों को दरकिनार कर दिया तो एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने की कोशिश की गई लेकिन उन संगठनों के लोगों का कहना है कि उन्हें उनसे मिलने नहीं दिया गया। ध्यान रहे की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस समय बीमार बताए जाते हैं और उनसे मिलने का कार्यक्रम उनके करीबी लोग ही तय करते हैं।

मुस्लिम संगठनों का मानना है कि इस समय केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जनता दल यूनाइटेड के 12 सांसदों पर पूरी तरह निर्भर है और अगर नीतीश कुमार चाहें तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके लिए मजबूर कर सकते हैं कि इस वक्फ संशोधन बिल को वापस लिया जाए। कई राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि अगर नीतीश कुमार पूरी तरह स्वस्थ और सक्रिय होते तो उनका रुख शायद दूसरा होता लेकिन इस समय पार्टी में भाजपा की ओर झुकाव रखने वाले नेताओं का वर्चस्व है और इसीलिए फैसला भाजपा के पक्ष में हो रहा है।

मुस्लिम संगठनों द्वारा नीतीश कुमार को लिखे गए पत्र में कहा गया है, “आपकी इफ्तार की दावत का मकसद सद्भावना और भरोसा को बढ़ावा देना होता है लेकिन भरोसा केवल औपचारिक दावतों से नहीं बल्कि ठोस नीति और उपायों से होता है। आपकी सरकार का मुसलमानों की जायज मांगों को नजरअंदाज करना इस तरह की औपचारिक दावतों को निरर्थक बना देता है।”

इन संगठनों ने स्पष्ट शब्दों में अपनी मांग दोहराते हुए कहा कि वक्फ संशोधन बिल 2024 से समर्थन तुरंत वापस लिया जाए। 

इन संगठनों ने कहा है कि यह पत्र जुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ एक मजबूत स्टैंड है न कि बातचीत से इनकार। “अगर बातचीत वास्तविक और प्रभावी नीति व सुधार की राह बनाए तो हम सार्थक बातचीत के लिए तैयार हैं।” वक्फ संशोधन बिल के नुकसान को बताते हुए पत्र में कहा गया है कि अगर यह संशोधन लागू होता है तो यह शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, महिलाओं के केंद्र और धार्मिक स्थानों की सदियों पुरानी वक्फ जायदादों को खत्म कर देगा। इससे मुस्लिम समुदाय में गरीबी और अभाव और बढ़ेगा जैसा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में पहले ही बताया जा चुका है।

इन संगठनों ने कहा है कि यह पत्र जुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ एक मजबूत स्टैंड है न कि बातचीत से इनकार। “अगर बातचीत वास्तविक और प्रभावी नीति व सुधार की राह बनाए तो हम सार्थक बातचीत के लिए तैयार हैं।”

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संबोधित इन संगठनों के पत्र में यह भी कहा गया है कि अगर यह बिल कानून बनता है तो आप और आपकी पार्टी जदयू को इसका मुकम्मल जिम्मेदार ठहराया जाएगा। “हम संविधान के इस उल्लंघन के खिलाफ कानूनी, लोकतांत्रिक और राजनीतिक तरीकों से भरपूर विरोध जारी रखेंगे।”
वक्फ बिल 2024 क्या हैः भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार संसद में वक्फ (संशोधन) बिल लेकर आई है। पिछले साल अगस्त में पहली बार प्रस्तावित, यह बिल संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच के बाद पास हो गया, लेकिन इसमें विपक्षी सांसदों के सुझाए गए संशोधनों को शामिल नहीं किया गया। इसे फिर से पेश किया गया तो विपक्ष ने इसका व्यापक विरोध किया।
यह बिल 'वक्फ बाई यूजर' प्रावधान को खत्म करने का प्रयास करता है, जो किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता देता है, अगर उसे लंबे समय तक धार्मिक या चारिटेबल उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया हो, भले ही उसका आधिकारिक रिकॉर्ड न हो। इसके अलावा, यह बिल किसी मुसलमान को इस्लाम अपनाने के पहले पांच साल में वक्फ बनाने से रोकता है।

यह बिल वक्फ ट्रिब्यूनल के अधिकार को सीमित करता है और उनके आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की अनुमति देता है। यह ट्रिब्यूनल पैनल से एक मुस्लिम कानून विशेषज्ञ की स्थिति को भी खत्म करता है। बिल में विवाद का एक प्रमुख बिंदु स्वामित्व नियमों में प्रस्तावित बदलाव है, जो ऐतिहासिक मस्जिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों को प्रभावित कर सकता है, जिनका प्रबंधन वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है।
मुस्लिम विद्वानों का कहना है कि इनमें से कई संपत्तियों का उपयोग मुसलमानों द्वारा पीढ़ियों से किया जा रहा है, लेकिन उनके पास औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं, क्योंकि उन्हें अक्सर मौखिक रूप से या बिना कानूनी रिकॉर्ड के दान किया गया था।1954 के वक्फ अधिनियम ने "वक्फ बाई यूजर" प्रावधान के तहत ऐसी संपत्तियों को मान्यता दी थी। हालांकि, नया बिल इसे हटा देता है, जिससे कई वक्फ संपत्तियों के भविष्य को लेकर चिंता बढ़ गई है।

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मुस्लिम समुदाय का मानना है कि यह बिल उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाएगा और उनकी संपत्तियों पर उनके अधिकार को कमजोर करेगा। इसके अलावा, वक्फ ट्रिब्यूनल के अधिकारों को सीमित करने और मुस्लिम कानून विशेषज्ञों को हटाने के प्रावधानों को भी समुदाय द्वारा अनुचित माना जा रहा है।

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समी अहमद
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