क्या मोदी सरकार बचे-खुचे मीडिया को भी ख़त्म कर देगी? साफ़ छवि वाले पत्रकारों को धमकाकर वह क्या हासिल करना चाहती है? क्या वह आम चुनाव के मद्देनज़र ऐसा कर रही है? क्या ऐसा करके उसने इमर्जेंसी से भी बदतर हालात नहीं कर दिए हैं? मीडिया पर इस जानलेवा हमले से विश्व में भारतीय लोकतंत्र की क्या छवि बनेगी?
यूपी में क्या हो रहा है ? किसकी सरकार बन रही है, बस यही सवाल हर ओर गूंज रहा है ? उर्मिलेश जी का दावा है कि बीजेपी की ज़मीन खिसक रही है और वो पहले से कमजोर हुई है मोदी के बावजूद । आशुतोष ने उनसे विस्तार से बातचीत की
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बीएसपी की मायावती पर जातिवादी राजनीति के आरोप क्यों लग रहे हैं और ये आरोप लगाने वाले क्या अपने गिरेबान में झाँक रहे हैं?
रोहिण कुमार की किताब लाल चौक में कश्मीर के समकालीन इतिहास के साथ ही मौजूदा परिदृश्य की जटिलताओं और उलझावों को दर्शाया गया है। कैसी है यह किताब, जानिए पुस्तक समीक्षा में।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के संस्मरणों की किताब ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ की किताब आ चुकी है। नवारुण प्रकाशन ने इसका प्रकाशन किया है। पढ़िए, प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव से इसकी समीक्षा।
जम्मू-कश्मीर के प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘राइजिंग कश्मीर’ के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की हत्या को दो साल हो चुके हैं लेकिन अब तक उनके हत्यारों का पता नहीं चल सका है।
सन् 2020 में आई कोरोना महामारी के दौरान देश के करोड़ों मज़दूरों और उनके परिजनों की यंत्रणा, बेहाली और तकलीफ़ के बारे में जब कभी याद किया जायेगा, सत्ताधारियों की ‘हिन्दुत्व-वैचारिकी’ पर भी सवाल उठेंगे।
प्रधानमंत्री ने रात के ठीक नौ बजे अपने-अपने घरों की लाइट नौ मिनट बुझाने और बालकनी या घर के बाहर खड़े होकर दीया, मोमबत्ती या टॉर्च आदि जलाने की अपील की! जिनकी छत के साथ बालकनी नहीं होगी या जिनके पास छत ही नहीं होगी, वे क्या करेंगे?
19 मार्च को जिस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी कोविड-19 के गंभीर ख़तरे पर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे, अपने देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कुल मामले 173 से ऊपर हो चुके थे। लेकिन इससे मरने वालों की संख्यी अभी तक सिर्फ़ 5 बताई गई है।
मोदी सरकार 28 सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। इनमें बीपीसीएल भी है। लेकिन एक बड़े लाभकारी उपक्रम को सरकार निजी हाथों में क्यों सौंप रही है?
चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की कई मुद्दों पर आलोचना की गई है। नफ़रत की राजनीति बीजेपी ने की तो हिंदुत्व के लिए केजरीवाल निशाने पर क्यों?
सीएए-एनपीआर-एनआरसी के विरोध में चल रहे आंदोलनों में शामिल लोगों को इसे व्यापक तो बनाना ही चाहिए, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह अहिंसक और लोकतांत्रिक हो।