सही सूचना का शासकों पर भारी दबाव होता है। महामारी या आपदा के दिनों में सूचना या ख़बर लोगों को बचाने का रास्ता खोलती है। दुर्भाग्यवश, अपने देश में लोगों का बड़ा हिस्सा काफी समय तक कोविड-19 या कोरोना वायरस के बारे में न सिर्फ अनजान रहा अपितु बेफिक्र भी। हमारी सरकार जिस वक्त चीन, इटली, अमेरिका, मालदीव और मेडागास्कर में पढ़ रहे या किसी काम से गए लोगों को ढो-ढोकर स्वदेश ला रही थी, उस समय भी देश में बेफिक्री का माहौल था।

क्या मोदी सरकार ने लॉकडाउन का एलान करने से पहले राज्य सरकारों से किसी तरह की बातचीत की। लॉकडाउन के एलान के बाद महानगरों से बड़ी संख्या में मजदूरों का गांव की ओर पलायन शुरू हो गया और लाखों लोग रातों-रात सड़क पर आ गये। अचानक हुए इस एलान से ग़रीब वर्ग पर मानो आफत ही टूट पड़ी है। सरकार ने लोगों को इतना वक्त भी नहीं दिया कि वे ज़रूरी वस्तुएं जुटा सकें। जबकि चीन और दक्षिण कोरिया ने बिना देशव्यापी लॉकडाउन किये ही इस वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण पा लिया।
13 मार्च तक भारत सरकार को कोरोना वायरस से किसी खास बड़े खतरे का अंदेशा नहीं नजर आ रहा था। सरकार की तरफ से एक उच्च अधिकारी ने कहा था कि कोरोना वायरस से भारत में किसी तरह की ‘मेडिकल इमरजेंसी’ जैसी स्थिति नहीं होने जा रही है। उस वक्त कोरोना वायरस को लेकर सरकार का ध्यानाकर्षण करती विपक्षी सांसद राहुल गांधी की टिप्पणियों और ट्वीट को भी नजरंदाज किया गया। यहां तक कि सत्ता-समर्थकों के कई समूहों में राहुल का मजाक भी उड़ाया गया।