मौजूदा शासन में घटनाएं इस कदर तेजी से घट रही हैं कि एक घटना के बारे में लोग अपनी राय बनायें तब तक उससे भी बड़ी कोई दूसरी घटना घट जाती है। तरह-तरह के फ़ैसलों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। अभी सरकार ने कोई एक विवादास्पद फ़ैसला लिया और उस पर समाज में चर्चा शुरू हो कि उससे पहले ही कोई और बड़ा फ़ैसला ले लिया जाता है। पिछले कुछ महीनों में कितने सारे मसले, कितने सारे फ़ैसले सामने आ चुके हैं। एक से एक बढ़कर भयावह, विवादास्पद और दूरगामी महत्व या असर वाले!
लाभकारी कंपनी बीपीसीएल को निजी हाथों में क्यों देना चाहती है मोदी सरकार?
- सियासत
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- 9 Mar, 2020

मोदी सरकार 28 सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। इन 28 कंपनियों में बहुत बड़ी और लाभकारी महारत्न कंपनी है - बीपीसीएल। अचरज में डालने वाली बात है कि एक बड़े लाभकारी उपक्रम को सरकार निजी हाथों में क्यों सौंप रही है? बीपीसीएल के निजीकरण से भारी पैमाने पर रोज़गार छिनेगा। हैरानी की बात है कि बीपीसीएल को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा संगठित प्रतिरोध ही नहीं हुआ।
दिल्ली की भयानक हिंसा-उपद्रव के बाद इन दिनों मीडिया में कोरोना वायरस छाया हुआ है। यह वाकई भयानक वायरस है, जिससे दुनिया का बड़ा हिस्सा डरा-सहमा हुआ है। इधर, यस बैंक का घोटाला और उसके संस्थागत पतन का मामला सामने आया। अब देश की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड यानी बीपीसीएल बिकने जा रही है। इसके बिकने से पहले या उसके तत्काल बाद कोई और बड़ी ख़बर सामने आ जायेगी। इस तरह ख़बरों से ख़बर को ‘मारने’ का सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन इस कॉलम में आज हम सिर्फ बीपीसीएल के निजीकरण के बारे में बात करेंगे।