अपने लेख की शुरुआत आज मैं एक उद्धरण से कर रहा हूँ। यह उद्धरण है- संविधान-प्रारूप लेखन समिति के अध्यक्ष डॉ. भीम राव अम्बेडकर का। उन्होंने ‘हिन्दू राष्ट्र’ की अवधारणा पर बहुत साफ़ शब्दों में कहा था:
नागरिकता क़ानून: समर्थन-विरोध लड़ाई के नतीजे से तय होगा लोकतंत्र का भविष्य!
- सियासत
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- 15 Dec, 2019

‘हिन्दुत्व’ के नये राजनीतिक प्रतीक-पुरुष बनकर उभरे मोदी-शाह को भी मालूम है कि नागरिकता क़ानून की यह राजनीतिक लड़ाई उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण और कितनी चुनौतीपूर्ण है! लेकिन सबकुछ निर्भर करेगा जनता पर। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ नहीं है। सारा दोरामदार हिन्दी भाषी क्षेत्रों पर है, जहाँ मनुवादी हिन्दुत्व की ताक़त हाल के वर्षों में बढ़ी है और कांग्रेसी-समाजवादी-वापमंथी बुरी तरह कमज़ोर हुए हैं और बहुजन आंदोलन लगभग ध्वस्त हो चुका है।
‘हिन्दू राष्ट्र की धारणा इस देश के लिए ख़तरनाक है। इसके समर्थक कुछ भी कहें, पर हिन्दुत्व स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के मूल्यों के लिए बड़ा ख़तरा है। इसलिए हिन्दू-राष्ट्र हमारे प्रजातंत्र के लिए सर्वथा अनुपयुक्त होगा। हिन्दू राष्ट्र को हर क़ीमत पर रोका जाना चाहिए!’ -(डॉ. अम्बेडकर संपूर्ण लेखन-भाषण, हिन्दी संस्करण, खंड 15, पृष्ठ 365)।
संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होने और राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB यानी कैब) अब नागरिकता का संशोधित अधिनियम (CAA) बन चुका है! इस नये नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 को लेकर सत्ताधारी बीजेपी और उसके विरोधियों, दोनों के सामने आज गंभीर चुनौतियाँ हैं। सत्ताधारी बीजेपी के सामने चुनौती है कि अपने बल पर बहुमत न होने के बावजूद राज्यसभा में ‘संसदीय-प्रबंधन’ करके उसने विधेयक तो पास करा लिया, अब जनता के कड़े प्रतिरोध का प्रबंधन वह कैसे करे? इस नये क़ानून के विरोधियों, ख़ासकर विपक्षी दलों, जनसंगठनों और सिविल सोसायटी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे इस मुद्दे पर जनता के प्रतिरोध को किस तरह आगे बढ़ाएँ? देश के कई राज्यों की सरकारों ने भी इसे लागू करने से इंकार कर दिया है। पर बीजेपी जिस बात को लेकर आश्वस्त है और विपक्ष जिसे लेकर सतर्क नहीं नज़र आ रहा है- वह है इस विवादास्पद अधिनियम के समर्थन-विरोध को हिन्दी भाषी प्रदेशों में ‘हिन्दू-मुसलमान’ में तब्दील करने का सत्ताधारी एजेंडा!