इसे दिलचस्प संयोग कहें या विडम्बना कि देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान- जेएनयू को बर्बाद करने पर आमादा मौजूदा सरकार के दो बड़े कैबिनेट मंत्री जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व-छात्र (Alumni) हैं। देश के विदेशमंत्री और वित्तमंत्री, दोनों जेएनयू के पढ़े हैं और दोनों ही अपने छात्र-जीवन में आरएसएस-बीजेपी या उनके विवादास्पद छात्र संगठन-अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य नहीं रहे। विदेशमंत्री एस जयशंकर जेएनयू के छात्र के तौर पर इन पंक्तियों के लेखक से कुछ वर्ष सीनियर थे। कैंपस में हमारा उनसे परिचय नहीं हुआ क्योंकि हमारे प्रवेश के साल भर पहले ही वह विदेश सेवा में दाखिल हो चुके थे। निर्मला सीतारमण कुछेक साल मुझसे जूनियर थीं।

भाई जयशंकर, आपकी प्रशंसा सुनता था तो जेएनयूआइट होने के नाते हमें अच्छा लगता था। आज आप सरकार के वरिष्ठ मंत्री हैं। आपकी सरकार सिर्फ़ जेएनयू ही नहीं, देश के सभी श्रेष्ठ संस्थानों और सरकार द्वारा स्थापित विश्वविद्यालयों को बर्बाद करने पर तुली हुई है। ऑक्सफ़ोर्ड, कैम्ब्रिज और हार्वर्ड सहित दुनिया के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों के छात्र-शिक्षक और तमाम बुद्धिजीवी भी आज यह बात कह रहे हैं। वे सब भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों के क्रमशः विनाश पर चिंता जता रहे हैं। इसलिए गोलमोल बोलने से काम नहीं चलेगा।
एस जयशंकर के निकटस्थ-सहपाठियों के मुताबिक़ वह उन दिनों किसी राजनीतिक-वैचारिक धारा से सम्बद्ध नहीं थे। पर जहाँ तक मुझे याद आ रहा है, निर्मला ‘फ्री-थिंकर्स’ नामक एक छात्र-समूह से सम्बद्ध थीं, जो वामपंथी विचारों की आलोचना करता था और अपने आपको स्वतंत्र चिंतन का हिमायती बताता था। उस समूह के अंदर भी अलग-अलग सोच के लोग थे। अपनी-अपनी सर्किल में इन दोनों की अच्छी छवि थी। आज ये दोनों व्यक्ति एक ऐसी सरकार के बड़े ओहदेदार हैं, जो उनके निर्माता-शिक्षण संस्थान (Alma Mater) को तबाह करने में जुटी हुई है। ऐसे में जेएनयू के मौजूदा हाल पर इन मंत्रियों की हर राय-हर टिप्पणी का ख़ास महत्व है।