2019 के मई महीने में दोबारा जनादेश हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के शीर्ष नेताओं और मंत्रियों ने जिन दो शब्दों का उल्लेख सबसे कम किया है, वे हैं - विकास और रोज़गार!। जबकि 2014 में मोदी सरकार के दो सबसे प्रमुख नारे थे- ‘सबका साथ सबका विकास’ और ‘दो करोड़ लोगों को रोज़गार!’। कुछ समय बाद ही प्रधानमंत्री और अन्य सत्ताधारी नेताओं ने अपनी सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए 2022 का लक्ष्य तय कर दिया था। सरकार सिर्फ पांच साल यानी 2019 के लिए बनी थी पर प्रधानमंत्री सहित सभी प्रमुख नेता अपनी अगली चुनावी-जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि वे अक्सर ही 2022 के लक्ष्य का उल्लेख करते रहते थे।

वैश्विक सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक़, दुनिया के तमाम ग़रीब और बदहाल लोगों का 28 फ़ीसदी हिस्सा भारत में रहता है। लेकिन एक राष्ट्र के रूप में अपनी इस दयनीय स्थिति पर क्या हमारी सरकार या समाज के स्तर पर किसी तरह की गंभीर चर्चा दिखती है? संपूर्ण राष्ट्र को नागरिकता और एनपीआर-एनआरसी के सवाल में उलझा दिया गया है। लोग अपने देश और समाज की बदहाली पर सत्ताधीशों से उनके कामकाज का हिसाब-किताब पूछने के बजाय स्वयं के भारतीय होने का सबूत इकट्ठा करने में जुटे हुए हैं!