पिछले सप्ताह देश के आवास और नगर विकास मंत्री हरदीप पुरी ने दिल्ली के ‘लुटियन ज़ोन’ के समूचे परिदृश्य को बदलने और संसद व सचिवालय के लिए नए भवनों के निर्माण की एक अति-महत्वाकांक्षी योजना का एलान किया। इससे पहले सिर्फ़ संसद की नई बिल्डिंग और कुछेक नये भवनों के निर्माण की अटकलें लगाई जा रही थीं। मोदी सरकार ने फ़िलहाल संसद के मौजूदा ऐतिहासिक भव्य भवन को बख्श दिया और उसे बरकरार रखने का फ़ैसला किया पर यह तय नहीं है कि उस भवन का उपयोग किसके लिए होगा! नया संसद भवन सन् 2022 में तैयार हो जाएगा, जब भारत अपनी आज़ादी का 75 वाँ साल मना रहा होगा। तब संसद का अधिवेशन नयी बिल्डिंग में होगा, उस बिल्डिंग या उस सेंट्रल हॉल में नहीं, जहाँ आज़ाद भारत की संसद का पहला सत्र हुआ था या जहाँ संविधान सभा की बैठकें होती थीं। आज़ादी के 75वें साल में वे तमाम जगहें वीरान होंगी या सरकारी बाबुओं के हवाले होंगी, जहाँ महज कुछ ही दशक पहले जवाहर लाल नेहरू, डॉ. भीम राव आम्बेडकर, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, ज़ाकिर हुसैन, इंदिरा गाँधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, भूपेश गुप्ता, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रजीत यादव, सोमनाथ चटर्जी, वीपी सिंह या डॉ. के. आर. नारायणन की आवाज़ें गूँजा करती थीं।
नये संसद भवन पर फ़िज़ूलख़र्ची: डेमोक्रेसी मरती रहेगी, बिल्डिंग चमकती रहेगी!
- सियासत
- |
- |
- 3 Nov, 2019

संसद भवन और केंद्रीय सचिवालय की जगह ‘न्यू इंडिया’ की नयी मायानगरी 2022-24 तक! क्यों चाहिए, एक नयी पार्लियामेंट बिल्डिंग, नया सचिवालय और राजपथ का नया परिदृश्य! सवाल है- क्या नए चमकीले भवनों के निर्माण से हमारी डेमोक्रेसी चमकेगी या लोकतांत्रिक संविधान के तहत काम करने से? समाज को सुंदर और सुसंगत बनाने से डेमोक्रेसी का विस्तार होगा या आर्थिक मंदी के दौर में भारी फ़िज़ूलख़र्ची से?