हमारे मीडिया में हिन्दी शब्द ‘घोटाला’ बहुत घिस-सा गया है! जहाँ देखिए, जिसे देखिए वही इस शब्द का हर छोटी-बड़ी अनियमितता या भ्रष्टाचार के लिए इस्तेमाल कर लेता है। हिन्दी न्यूज़ चैनलों की तरह विशेषणों के अतिशय इस्तेमाल से मैं हमेशा बचने की कोशिश करता हूँ। पर आज इस घिसे हुए ‘घोटाला’ शब्द से बात नहीं बन रही है इसलिए ‘घोटाला’ को ‘महा-घोटाला’ लिखने के लिए सुधी पाठकों से क्षमा चाहता हूँ। अभी हाल में देश के प्रतिष्ठित पत्रकार नितिन सेठी ने एक साथ तीन भाषाओं-अंग्रेज़ी, हिन्दी और मलयालम की अलग-अलग न्यूज़ वेबसाइटों पर ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ के शासकीय फ्रॉड का जिन ठोस तथ्यों के साथ पर्दाफ़ाश किया, वह सचमुच केंद्र की बीजेपी सरकार का ऐसा महा-घोटाला है, जो हमारी लोकतांत्रिक संरचना और शासन चलाने की प्रक्रियागत-नियमावली, दोनों को ध्वस्त करता नज़र आता है।

‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ के शासकीय फ्रॉड का जिन ठोस तथ्यों के साथ पर्दाफ़ाश किया गया, वह महा-घोटाला नहीं तो क्या है? इस बारे में दो-दो बड़ी ख़बरों के ब्रेक होने के बावजूद हमारे मुख्यधारा मीडिया, ख़ासकर हिन्दी अख़बारों-न्यूज़ चैनलों और सत्ता के गलियारे में इलेक्टोरल बॉन्ड की फ़्राड व्यवस्था पर कोई गंभीर चर्चा या हस्तक्षेप अब तक नहीं नज़र आया।
नितिन की ख़बरों से उठे सवालों का महाबली-नेताओं वाली केंद्र की बीजेपी सरकार भी कोई ठोस जवाब नहीं दे पा रही है। संसद के चालू सत्र में विपक्षी दलों की तरफ़ से नितिन के पर्दाफ़ाश के हवाले से कई सवाल उठाए गए पर सरकार सवालों को संबोधित करने के बजाय सिर्फ़ राजनीतिक बयानबाज़ी करती नज़र आई। इलेक्टोरल बांड का मामला बीते काफ़ी समय से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब देखना होगा कि इन नये खुलासों के बाद कोर्ट इस मामले में क्या कुछ करता है?