गुरुवार को ब्रेकिंग न्यूज़ चली कि प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार की सुबह नौ बजे देश को संबोधित करेंगे। आठ बजे रात के बजाय इस बार सुबह नौ बजे का समय तय किया गया था। शायद इस संकेत के लिए कि इस बार किसी कड़े फ़ैसले या असुविधाजनक क़दम का एलान नहीं होगा। प्रधानमंत्री के कट्टर समर्थक, जिन्हें सोशल मीडिया पर अक्सर ‘भक्त’ के रूप में संबोधित किया जाता है, उनमें भी ज़्यादातर ने इस बात की कल्पना नहीं की होगी कि प्रधानमंत्री इस बार पाँच अप्रैल को रात के ठीक नौ बजे अपने-अपने घरों की लाइट नौ मिनट बुझाने और बालकनी या घर के बाहर खड़े होकर दीया, मोमबत्ती या टॉर्च आदि जलाने की देशवासियों से अपील करेंगे! पहले अंधेरा कीजिए, फिर टिमटिमाती-सी रोशनी कीजिए! जिनकी छत के साथ बालकनी नहीं होगी या जिनके पास छत ही नहीं होगी, वे क्या करेंगे?

सैकड़ों न्यूज़ चैनल और हज़ारों अख़बार वाले इस महादेश में क्या इन सबको कोविड-19 के बारे में न्यूनतम जानकारी भी नहीं है? आख़िर सूचना और ज्ञान का इतना अकाल क्यों है? अज्ञानता का ऐसा विशाल और अनोखा आनंदलोक और कहाँ मिलेगा? निश्चय ही ऐसी लाखों-करोड़ महिलाएँ, पुरुष और बच्चे 5 अप्रैल के कार्यक्रम को सफल करने में जुटे होंगे।
देश में तक़रीबन बीस लाख से ज़्यादा लोग अब भी बेघर हैं। बेघर और झोपड़पट्टी या अस्थायी क़िस्म की कामचलाऊ संरचनाओं में रहने वालों को जोड़ा जाए तो संख्या करोड़ों में होगी। नोटबंदी और हाल के लॉकडाउन के बाद बेरोज़गार हुए लोगों की संख्या भी लाखों की बजाय करोड़ों में होगी। ऐसे करोड़ों लोग 5 अप्रैल को सचमुच असमंजस में होंगे कि वे किस बात के लिए दीया या मोमबत्ती जलायें! पर भारतीय टेलीविजन चैनल रविवार को 9 बजे से कुछ पहले ही दिखाना शुरू कर देंगे कि संपूर्ण भारत किस तरह कोरोना से लड़ने के लिए कैंडल जला रहा है!