यूपी का चुनावी परिदृश्य फिर उलझता जा रहा है। शुरू में लगा था मोदी और योगी की बीजेपी अपराजेय है। पर जिस तरह समाज के विभिन्न हिस्सों में सत्ताधारी बीजेपी के विरुद्ध आक्रोश उभरता दिखा और पश्चिम यूपी में जिस तरह किसान आंदोलन ने बीजेपी के खिलाफ़ माहौल खड़ा कर दिया, उससे विपक्ष की सबसे बडी पार्टी-सपा को फायदा मिलता नजर आया।

दिलचस्प कि कांग्रेसियों ने यूपी के मैदान में अब तक लाल टोपीधारियों की तरह 'फरसा-गड़ासा' भी नहीं थामा! वे कुछ सामाजिक मुद्दों को उठाकर चुनाव के दौरान अपने जनाधार में इज़ाफा करने की कोशिश कर रहे हैं।
अखिलेश-जयंत के गठबंधन ने उसे और ताकत दी। पर कुछ ही दिनों बाद विपक्ष की उस बढ़त पर संकट मंडराता नजर आया।
कांग्रेस पहले से बेहतर स्थिति में होती तो उसे फायदा मिल सकता था। पर आज भी वह बहुत आगे नहीं बढ़ सकी है। अपने शीर्ष नेतृत्व के मन-मिजाज और अतीत के 'सियासी गुनाहो' के चलते देश की सबसे पुरानी पार्टी यूपी में उस तरह स्वीकार्य नहीं है, जिस तरह वह राजस्थान या छत्तीसगढ़ में लगभग हर वर्ग में स्वीकार्य है!