19 मार्च को जिस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी कोविड-19 के गंभीर ख़तरे पर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे, अपने देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कुल मामले 173 से ऊपर हो चुके थे। लेकिन इससे मरने वालों की संख्यी अभी तक सिर्फ़ 4 बताई गई है। चार मौतें और एक मरीज ने आत्महत्या कर ली। इस तरह कोविड संक्रमित मृत लोगों की संख्या पाँच मानी जा सकती है।
कोरोना: प्रधानमंत्री के संदेश में आपदा से बचाव का कोई बड़ा पैकेज क्यों नहीं?
- सियासत
- |
- |
- 20 Mar, 2020

इस बात को सरकार के सभी बड़े नौकरशाह समझ रहे हैं कि संक्रमण का फैलाव समुदायों-गाँव-कस्बों और गली-मोहल्ले तक नहीं हो, इसकी हरसंभव कोशिश करनी होगी। इसके लिए लोगों के स्वास्थ्य-परीक्षण यानी टेस्टिंग की संख्या बढ़ानी होगी, जो भारत में नाकाफी है। यही ग़लती अमेरिका, इटली और स्पेन आदि ने की थी।
राज्यों का हिसाब देखें तो सबसे संक्रमित सूबा महाराष्ट्र बताया गया है। दुनिया के तमाम देशों में कोरोना के फैलाव को देखते हुए भारत में अगले दो सप्ताहों में क्या स्थितियाँ होंगी, इसका बड़े चिकित्सा विज्ञानी भी कुछ ठोस अनुमान लगाने से इनकार कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में रविवार को सुबह से शाम के बीच ‘जनता-कर्फ्यू’ लागू करने का लोगों का आह्वान किया। शायद इस बात से ज़्यादा लोग इनकार नहीं करेंगे कि रविवार के दिन लोगों की सीमित आवाजाही को और सीमित करने में यह आह्वान कुछ सहायक हो सकता है। लेकिन कोविड-19 के प्रसार को अगर समय रहते रोका नहीं गया तो लोगों की आवाजाही तो यूँ ही ठप्प हो जाएगी। इसलिए ‘जनता-कर्फ्यू’ और शाम पाँच बजे ‘थाली-ताली-चम्मच बजाने’ के एलान का कोई ख़ास अर्थ नहीं निकलता नज़र आ रहा है। लोगों की आवाजाही तो आवागमन के साधनों को बंद या सीमित करके भी कम की जा सकती है। इसके लिए ‘कर्फ्यू’ जैसे डरावने शब्द की भला क्या ज़रूरत? और फिर सिर्फ़ एक दिन की आवाजाही के रुकने या कम होने से सबकुछ दुरुस्त नहीं हो जाएगा।